भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग डकैती प्राधिकरण जिसके हजार करोड़ उद्योगपति पावर प्लांट इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल की बैटरी बनाने वाली फैक्ट्री अधिकांशराज मार्ग ठेकों में सहभागिता मंत्री घोर भ्रष्ट जालसाज मंचों से इमानदारी का भाषण पेलने वाला नितिन गडकरी है। जिसके बेटे सोम गडकरी का पुल बनारस में ढह गया था।
ग्रामीण विकास में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत वहीं केंद्र सरकार 7 मी चौड़ी अर्थात 2 लेन सड़क दोनों तरफ 1.5 मी. की पट्टियां या शोल्डर मुर्रम की पट्टियां आदि का निर्माण 40लाख रुपए किलो मीटर में 5 साल की परफॉर्मेंस गारंटी पर बनवाती है।
अर्थात फोरलेन के लिए एक करोड़ प्रति किमी लागत मान लेते हैं। सिक्स लेन की कीमत केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के निर्माण कार्यों की दरों की अनुसूची या शेड्यूल ऑफ़ रेट्स SOR से दो करोड़ मान लेते हैं तो 15, 18 से लेकर रू250 करोड की प्रति किलोमीटर लागत और राष्ट्रीय राजमार्ग डकैती प्राधिकरण द्वारा अपने खास मित्र अडानी को लाभ पहुंचाने और उसमें से मोटा हिस्सा नितिन गडकरी द्वारा डकार ने का षड्यंत्र समझा जा सकता है।
जहां तक कंट्रोलर ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया या बहुत चर्चित काग के संबंध में मैं आपको स्पष्ट कर दूंकि यह केवल कागजों पर चल रही जालसाजी उसके आंकड़ों की हेरा फेरी कोई कानून की व्याख्या उसमें हुई अनियमितता की भाषा व उसके शब्दों लेखन को पकड़ सकने में सक्षम होता है।
जो तथ्य मैं आपके ऊपर दिए हैं यहां तक कि वह उन तथ्यों का भी अध्ययन बारीकी से करने में सक्षम है वह कोई तकनीकी संस्था नहीं और ना ही उसमें कोई भी तकनीकी ज्ञानी इंजीनियर डॉ वैज्ञानिक कृषि वैज्ञानिक आदि तक नहीं होते हैं यहां तक कि वह डीटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट मैं लिखी गई जालसाजी पूर्ण भाषा खरीदी में किए जा रहे घोटालों उसके माल की दरों का केंद्रीय डायरेक्टरेट ऑफ सिविल सप्लाईज या केंद्रीय नागरिक आपूर्ति संचालनालय जिसको पूरे देश की राज्य सरकारें अक्षरश: पालन करती हैं और उनकी सभी प्रकार के बालों की खरीदीकार्यों को करवाने की दरें ही राज्यों में लागू होती हैं। जिसकी दरों और बाजार दरों के वास्तविक कीमतों के अध्ययन का अंतर निकालने में भी सक्षम नहीं है। यह दरें केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और केंद्रीय नागरिक आपूर्ति संचालनालय मैं बैठे अधिकारी भी बड़े-बड़े उद्योगपतियों और कंपनियों के इशारे पर नाच व मोटा पैसा हजम कर जानबूझकर उन दरों में भी 10 से 25% की अधिक दरें निर्धारित करता है।
जहां तक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग डकैती प्राधिकरण का सवाल है। वह केवल टोल टैक्स की उन्हीं सड़कों को ठेकेदारों के माध्यम से बनवाता व देखरेख करता हैजहां से मोटी कमाई करनी होती हैअब नई कहानी शुरू होती हैजो सड़के टोल टैक्स में बनवा जाती है जानबूझकर2 से 3 करोड रुपए किलोमीटर की सड़कों को 5 -7 गुना 18 से 20 करोड रुपएप्रति किलोमीटर जिसमें पांच मंत्रालय शहरीय व ग्रामीण विकास, वन एवं पर्यावरण, वित्त, भूतल परिवहन के सचिवों मंत्रियों को 1-1 करोड रु प्रति किमी अर्थात 5 करोड़प्रति किमीस्वीकृति में लग जाते हैं जो दुगुनी हो जाते हैंइसके साथ ही 80% बैंक ऋण जो केंद्र सरकार की गारंटी पर ठेकेदार को दिए जाते हैं। बैंक भी कुल ऋण की स्वीकृति से पूर्व डीपीआर का अध्ययन अपने इंजीनियरों तकनीशियन और सलाहकार इंजीनियरिंग फर्मो से करके ही बड़े ऋणों के मामले में 2 से 5% कमीशन खाकर ऋण स्वीकृत करते हैं। कुल मार्ग की लंबाई उस पर चलने वाले वाहनों की संख्या के हिसाब से प्रति किलोमीटर चार पहिया वाहनों ट्रकों बसों या फिर पहियों के हिसाब से टोल टैक्स लगाया जाता है। उसका बहुत छोटा सा उदाहरण इंदौर से अहमदाबाद का आईवीआरसीएल दक्षिण की रेड्डी बंधुओं की जिसमें सुषमा स्वराज की साझेदारी थी। की इंदौर से झाबुआ गोधरा तक 195 किमी की सड़क 2008 में मात्र 200 करोड़ में स्वीकृत होनी चाहिए थी जिसे 650करोड़ में स्वीकृत किया गया।
जिसका भुगतान आम जनता जिस इंदौर से धार की 50 किलोमीटर की लंबाई पर ₹325 टाल देती है। इसी50 किमी इंदौर से उज्जैन की सड़क पर₹35 लगते हैं। बेशक मप्र सड़क डकैती विकास निगम ने 2008 में इस सड़क की लागत मात्र 50 करोड़ थी रु250करोड़ डीपीआर बनाकर बैंक का 80% ऋण स्वीकृत करवाया गया था। विदेशी कंपनी ने 80 करोड़ में बनाकर 30 करोड़ कमाए वह पूरी सड़क और उसका ऋण महाकाल टोल टैक्स को सौंप कर चली गई।
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