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दो हज़ार का नोट कालाधन को बढ़ाता हैं तो फिर इसे लाकर काले धन को क्यों व किसलिए बढ़ाया….!
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दिमाग़ी दिवालियापन से आत्मघाती फ़ैसले लेना,जल्दबाज़ी की बेहूदा ज़िद्द पर चढ़कर उसे मूर्खतापूर्ण रूप से लागू करना,घमण्ड व अहंकार के वशीभूत होकर सर्वसत्यानाश लाने वाले अपने घातक इरादों को झूठ बोलते थोपकर पूर्णतया गुमराह करते देश को भीषण अन्धकार में डुबाकर ऐसे विनाशक फ़ैसलों को ज़बरिया लादकर दूरगामी भीषणतम दुष्परिणामों को भुगतने की बर्बादी वाली सुनामी में देश को अखंड डूबना और इससे देश के आर्थिक ढाँचे क़ो तबाह बनाकर विकास को लंका की तरह जलाकर समूचे देश को कंगाली व दिवालियापन में डुबाने वाला नोटबंदी का भयावह किन्तु अतीव विनाश का विध्वंसक़ारी जो फ़ैसला लिया गया उसे विश्व के महानतम अर्थशास्त्री पूर्व प्रधान मन्त्री ड़ा० मन मोहन सिंह व नोबेल विजेता विश्व विख्यात अर्थ शास्त्री अमृत्य सेन इसे इतिहास का सबसे घातक तो रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघूराम राजन ने इसे विस्फोटक फ़ैसला बताते इस कदम की जमकर आलोचना की थी.महान पत्रकारों व अन्य बड़े अर्थशास्त्रियों ने तो इस फ़ैसलों को दिमाग़ी दिवालिएपन की संज्ञा देते हुए कहा था क़ि ज़बरिया नोटबंदी लाकर कालाधन, भ्रष्टाचार, उग्रवाद, आंतकवाद, नक्सलवाद व माओवाद ख़त्म करने का जो हिमालयी झूठ बोलकर देश के एक अरब तीस करोड़ लोगों की जेबें व पेट की भूख मिटाने वाली छोटी छोटी बचत पर डाका डालते उस पूँजी को बैकों में जबरन जमा करवाकर अरबों खरबों का राईसों को विशाल लोन देकर उसे विदेशों में धड़ल्ले से भेजने, कालाधन लेकर भागने वाले भगोड़ों और भ्रष्टाचार के सूरमाओं को लूटा दिया गया,फिर उसे बैंकों ने राईट आँफ याने माफ़ कर दिया.एक हज़ार का नोट बंदकर दो हज़ार का नोट लाकर कालाधन, कालाबाज़ारी व लूटखोरों को इतना लाभ पहुँचाया कि जिससे बैंकें ख़ाली व खोखली हो गई,आर्थिक संस्थान तबाह हो गए.आर्थिक ढाँचा ढह गया, जनता कंगाल व देश दिवालिया होकर रह गया. दो हज़ार का नोट लाकर देश से झूठ बोलकर संकट की त्रासदी में फँसा हमें धोखा दिया था वे ही अब आज दो हज़ार के नोटों को बंद कर वोही धोखा फिर दे रहें हैं. कुल मिलाकर विश्व झूठ के अजूबे डंकाधीश चाय वाले पनौती चाचा जो कभी नोटबंदी फैल होने व ग़लत साबित होने पर हर चौराहे पर सजा पाने को तैयार थे,मग़र मुँह छुपा कन्नी काट रहें फिर भी अब देश का हर गली चौराह उन्हें सजा देने के लिए उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हैं.ऐसे राजा के लिए किसी कवि ने बहुत अच्छी व उम्मदा पंक्तियाँ लिखी हैं….. “”जब विवेक से अँधा व बुद्धि से शून्य हो देश का राजा,तब बिके टका सेर भाजी और टका सेर खाजा””
“”कंगाली व दिवालियापन की सजा
भुगते देश व सारी प्रजा,जब मोहम्मद
तुग़लक़ से भी अधिक पागल हो देश का मूर्ख राजा””
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