पत्रकारिता सत्ता के तलवे चाट कर नहीं होती। पत्रकारिता शब्द ही विद्रोह का नाम है। सच को समझने, सच कहने सिर पर कफन बांध कर शोषित और पीड़ितों की आवाज उठाने हर सत्ताधीशों की आंख में किरकिरी बन जीवन जीना पड़ता है।
जो सत्ता के तलवे चाट कर अपने जीवन यापन, मौज-मस्ती, पैसा कमाने पत्रकारिता करते हैं। वे सब भांड व भड़वे कहलाते हैं।
वैसे भी अर्द्ध ज्ञानी 90% पत्रकार कटिंग पेस्टिंग मास्टर होने के साथ पत्रकारिता को ब्लैक मेलिंग से लूट और वसूली का हथियार मानते हैं।
जबकि सबसे पहले पत्रकारिता का धर्म होता है, सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय, अध्ययनशील बन हर पीड़ित शोषित की आवाज बन कर सत्ता के कानों तक पहुंचाना होता है।
कौन कर रहा है?
इसे भी समझिए। बेशक कड़वा है। पर सच तो यही है।
निवेदक लेखक एवं प्रस्तुति प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
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इंदौर
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