अजमेरा उवाच
जन गण मन अधिनायक जय है। भारत भाग्य विधाता,
यह गीत रविंद्र नाथ टैगोर ने 1911 में जॉर्ज पंचम की अगवानी में जो 1919 में आया लिखा था। उसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा था की है गीत उसके बाद में कभी ना बजाया जाए और न उपयोग किया जाए। परंतु नेहरू ने कुछ मजबूरी और कारण बस रविंद्र नाथ टैगोर की कुछ सच्चाई पूर्ण आवाज उठाने के लिए नेहरू ने उन आवाजों को दबाने, रविंद्र नाथ टैगोर को राष्ट्रकवि घोषित कर इस गीत को ही राष्ट्रगीत बना दिया यथार्थ में यह हमारी गुलामी का गीत है। इसकी पहली लाइन ही हमारी गुलामी का मजाक उड़ाते हुए हम जिनके अधीन थे उन नायकों का अभिवादन और जय कर रही है।
जन गण मन अधिनायक जय है।
भारत भाग्य विधाता।
जिनके हम अधीन थे जो हमारे नायक थे। जो उस समय के भारत के भाग्य विधाता थे उनकी जय कारा किया जा रहा है। किसने कहा 70 साल की आजादी हो गई हमारी।
की तो हम आज भी गुलामी का ही गा रहे हैं। और गीत गुलामी का गा रहे हैं गुलामी बुला रहे हैं।
पिछले 22 सालों से लगातार मै इसकी सच्चाई छाप रहा हूं कि इस गीत को बंद कर हमारे बंदे मातरम राष्ट्रगान को ही राष्ट्रगीत घोषित किया जाए।
यह बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित इस गीत को गाकर हमारे आजादी के योद्धाओं ने जो हमारी मातृभूमि की वंदना कर हमें प्रेरणा ऊर्जा और शक्ति देता है। जिसके दम पर हमारे आजादी के महानायकों ने 1947 तक आजादी की लड़ाई लड़ी। कांग्रेस ने किसको घोषित करने की कोशिश की और मुस्लिमों ने इसके विरूद्ध आवाज उठाकर कहा कि हम भारत भूमि की वंदना नहीं कर सकते।
तो आखिर मोदी क्यों वंदे मातरम को राष्ट्रगीत घोषित नहीं कर पाया 7 साल से। डीगें तो बड़ी लंबी चौड़ी हांकता है, 56 इंची, जो कि वास्तव में 40 का भी पूरा नहीं।
अब जबकि 7 साल से भाजपा की मोदी की सरकार है।
आखिर यह गीत क्यों राष्ट्रगीत के रूप में 302 सांसदों के साथ इसे संसद में पास नहीं करवाया जा रहा यहां तो केवल पूंजीपतियों के इशारे पर नाच कर पूंजी पतियों के लिए देश को बर्बाद किया जा सकता है।
देश की 2 पीढ़ियां गुलामी का गीत गाते गाते पुन: गुलामी को बुला रही हैं।
पर यह गीत नहीं बदल पा रहा है।
हो 40 इंची पूरा भी तो भी वंदे मातरम को ही राष्ट्रगीत घोषित कर दिया जाना चाहिए और जन गण मन अधिनायक जो नेहरू का इस देश को एक सचमुच देश की पट्टे की आजादी पर अभिशाप है।
कब मुक्ति दिलाई जाएगी?
मेरे देश के युवा साथियों आवाज उठाओ गुलामी के गीत से मुक्ति पाओ वंदे मातरम गांव नई ऊर्जा नया जोश नई प्रेरणा और भारत माता की देश की धरती की वंदना करो ना की उन मलेच्छ अंग्रेजों की वंदना करते करते 70 साल गुजर गए।
कब जागोगे उठो आवाज दो गुलामी का गीत नहीं, राष्ट्र का वंदन कीजिए। अभिनंदन कीजिए।
प्रस्तुति लेखक एवं निवेदक प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
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