प्रयास करता रहा कि लोग जागृत हों, भयमुक्त हो, बीमारी के चंगुल से बच जायें।में धरती पर खाने-पीने मुर्दे की तरह सोने तो नहीं आया।
मैं लगातार 16 महीने से अपनी वीडियो और लेखों से प्रयास करता रहा कि लोग जागृत हों, भयमुक्त हो, बीमारी के चंगुल से बच जायें। पर वे सुनने समझने को तैयार ही नहीं। आखिर में धरती पर खाने-पीने मुर्दे की तरह सोने तो नहीं आया। कैसे अपनी आंखों के सामने करोड़ों निर्दोष लोगों की अकाल मौत देखता रहूं। मैं भी साधारण इंसान हूं। प्रयास करता हूं। हर चेहरे पर खुशी मुस्कुराहट हो। ससम्मान जीवन यापन हो। सारा खेल भय का है। और भय फैलाने वालों के विरुद्ध उनके सच को जनता को बता कर, उनके भय के तांडव के पाखंड को क्षीण कर जनता के मन मस्तिष्क से भय मुक्त करने के प्रयास का अंश है, मेरे विषबाण रुपी शब्द, क्योंकि होम्योपैथी का सिद्धांत है विषं विषे समयंति। इसलिए दुष्टों के विष का समन करने निरीहों की सुरक्षा हेतु विषबाणों का समयानुकूल प्रयोग आवश्यक है। जिसके सार्थक परिणाम आप देख रहे हैं। कि मध्य प्रदेश मैं प्रदेश खुला हुआ है। करोड़ों लोग रोजगार धंधे से लगे हुए हैं। भूख से मरने वालों की संख्या दूसरे प्रदेशों की अपेक्षा यहां अत्यधिक कम है। तो यह विषाक्त शब्दों का ही प्रयोग था। जो जनता को देश में दूसरे प्रदेशों की अपेक्षा राहत मिल सकी। अभी भी उत्तराखंड केरल महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ जैसे अनेकों प्रदेशों में कर्फ्यू की नौटंकी और महामारी के प्रकोप की आड़ में प्रशासनिक तांडव चल रहा है। इसे भी समझें। दुष्टों को दुष्टों की भाषा ही समझ में आती है। जब राजा, अधिकारी ही दुष्ट हों। तो भाषा में दुष्टता का प्रयोग आवश्यक है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, सज्जनों से सज्जनता की विनम्र भाषा, और दूर्जनों से दुष्टता की क्रूर भाषा और व्यवहार करना ही आवश्यक है। इसका भी मनन करें। निवेदक प्रस्तुति एवं लेखक प्रवीण अजमेरा समय माया समाचार पत्र इंदौर
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