अजमेरा उवाच
भारत में भेड़िया झुंड पार्टी के आने के बाद अब न केवल शहरों को महानगरों से जोड़ने वाली सड़कें वर्न अनेकों गांवों को सड़कों से जोड़ने वाली सड़कों पर भी टोल टैक्स लगा दिए गए हैं परंतु सड़कों पर जानवरों की घूमने से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है दूसरी तरफ अधिकांश गांवों के बीच में से गुजरने वाली सड़कों पर दुधारू पशु जिसमें खासतौर से गायें बहुतायत से घूमने से दुर्घटनाओं कारण बनती है। सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं में लगभग 10% मैं सड़क पर घूमने वाली गायों का हिस्सा होता है। बेशक दुर्घटनाओं में जानवर भी दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। उनको छोटे आती है और कई चोटों के कारण मर भी जाती है यह भी सच है। इसकी जिम्मेदारी उनकी पलकों की होती है जिन्हें वह दूध निकालकर लावारिस सड़कों पर उनके मरने और उनसे टकरा कर दूसरों के मरने के लिए छोड़ देते हैं और ऐसे ही पलकों पर तो दंड होना ही चाहिए साथ ही जिन गांव की सड़कों पर ऐसी गाय घूमती फिरती है वहां के सरपंच सचिव पर भी दुर्घटनाओं की पुलिस रिपोर्ट में शामिल किया जा कर दंडित किया जाना चाहिए। इंदौर से लगी मांगलिया में सीमेंट की सड़क बन जाने के बाद में भी वहां के घोर बदतमीज दुकानदार सड़कों को दोनों तरफ सामान रखने के साथ वहां पर खरीददारों की वाहनों से भी पूरी सड़क भर जाती है वे उसे आधे से ज्यादा घेर लेते हैं। मांगलिया में पुलिस चौकी है। पर उनका पावन उद्देश्य तो वहां चल रहे जुए सट्टे के साथ वहां के डिपो में जो गाड़ी आती है उन गाड़ियों में जो पेट्रोल डीजल सौ 200 ली. रह जाता है उसके बेचने में उसकी कालाबाजारी में ज्यादा व्यस्त रहते हैं। स्वाभाविक है कौन सड़के साफ करवाएगा कौन ट्रेफिक क्लियर करेगा वहां पर पुलिस वालों को उससे कोई मतलब नहीं होता। इसके लिए वहां की ग्राम पंचायत और अब वह नगर निगम की सीमा में आ गया है तो उसकी जिम्मेदारी है कि वह सड़कों के दोनों तरफ से दुकानदारों के रखे हुए सामान और जनहित गाड़ियों को उठाकर भरकर ले जाए और वह मोटा फाइन करें। यह स्थिति हर गांव की है जो मुख्य मार्गों के दोनों ओर बसे हुए हैं। भी शख्स सड़कों पर सामान जमाने की घटनाएं केवल गांव में ही नहीं पूरे देश के शहरों की यही स्थिति है। चाहे वह दिल्ली हो इंदौर हो या छोटा बड़ा कोई अन्य शहर व गांव सब के दुकानदार जो है घोर नीच सूअर सड़कों को अपने बाप की जागीर समझते हैं। जो उस पर सामान जमा कर दुर्घटनाओं को आमंत्रित कर लोगों की मौत का तांडव देखते रहते हैं। और संबंधित थाने नगर निगम पालिकाएं और ग्राम पंचायतें ना तो वे गाय सांड आदि को उठाते हैं ना सड़कों को दुकानों के सामान व सड़कों पर खड़े वाहनों को हटाने व साफ रखने का करते हैं। आखिर उनसे होने वाली दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों को ऐसे गांव के पंच सरपंच सचिवों बालिकाओं परिषदों और निगमों को कम से कम दो ₹2लाख का मुआवजा उनकी बदतमीजियों के कारण हुई मौतों पर देना चाहिए साथ ही संबंधित अधिकारी कर्मचारी को कम से कम 3 माह की जेल भी होनी चाहिए जो मवेशियों वाहनों को हटाने की अपेक्षाओं से वसूली करके जेब में रख लेते हैं और दुकानदारों को सड़कों पर सामान रखकर दुर्घटनाओं का खुला तांडव करने की छूट दे देते हैं।
आखिर इस पर सरकार कानून क्यों नहीं बनाती ताकि वाहन चालकों का जीवन सुरक्षित हो सके।
वैसे वर्तमान में बैठा हुआ जाहिल मोदी ऐसे कोई कानून नहीं बनाएगा वह तो कानून बनाएगा जिसमें उसको वोट मिले पूंजीपति नोट दें।
उनका फायदा हो।
जनता का शोषण हो।
ऐसे कानून उसके घोर मक्कार, धूर्त जालसाज आईएएस अधिकारी जो केंद्रीय व राज्य सरकारों के मंत्रालय में बैठे रहते हैं। बनवाने में मोटा कमीशन खाकर उनके ही ड्राफ्ट को थोड़ा फेरबदल करके विधानसभा लोकसभा और राज्यसभा में स्वीकृत करवाते रहते हैं।
उन्हें जनता से कोई सरोकार नहीं रहता जब तक 25-50 आईएएस अधिकारियों मंत्रियों पूंजी पतियों की औलादें सड़कों पर इन हादसों में नहीं मरतीं। तब तक ऐसे कानून आना संभव नहीं।
कुछ वर्ष पूर्व भी गायों से संबंधित सड़कों पर विचरण करने से होने वाली दुर्घटनाओं के मामले में इस तथ्य को उठाया गया था। तब भी चांडाल मामू ने यह बयान जारी किया था कि गांव में सड़कों पर घूमने वाली गायों सांडों से होने वाली दुर्घटनाओं पर सरपंच सचिव को जिम्मेदार बनाया जाएगा। पर मामला फिर ठंडा हो गया।
सरकार को चाहिए कि इस पर भी तुरंत कानून लेकर आए।
प्रस्तुति लेखक एवं निवेदक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
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