आबादी अभिशाप नहीं वरदान, 140 करोड़ आबादी तो 280 करोड़ हाथ, सत्ता धीश सदुपयोग करना जानते तो दुनिया को चीन की तरह अपनी मुट्ठी में कर लेते।
अगर ज्यादा आबादी देश के लिए घातक है तो चीन अपनी बड़ी विश्व की अधिकतम आबादी के दम पर दुनिया का सुपर पावर बनने की तैयारी में क्यों है और दुनिया पर उसी के दम पर उसने सारे मोबाइल, टीवी, कम्प्युटर, इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रिकल्स से लेकर खिलौने, कपड़े, रसायन, दवा आदि के बाजारों पर कब्जा कैसे कर लिया? भूटान व अन्य सैकड़ों छोटे देश कम आबादी के बाद पीछे कैसे रह गए? सच इसके विपरीत यह है, आप के देश के शासक स्वयं कितना पढ़े लिखे दूरदर्शी उन्नति शील और देश की जनता के साथ देश की उन्नति, विकास, समृद्धि के लिए कितनी इमानदारी से सार्थक प्रयास करते हैं जिस देश के शासक एक तरफ चिल्लाते हैं, मैंने चाय बेची है। गरीबी देखी है। दूसरी तरफ सत्ता पाते ही जो पूंजीपति और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मोटे कमीशन के लिए इशारे पर नाच कर भूखे चांडाल, घोर नीच मानसिकता के जाहिल रु25 लाख का कोट, 8.5 हजार करोड़ रु का हवाई जहाज, जनता के पैसे से खरीद कर, रुपए 20 हजार करोड़ का अपना आवास बनाने, अपनी मौज मस्ती अय्याशी करते हो। रोज पेट्रोल डीजल गैस की कीमतें बढ़ाकर ₹30 के पेट्रोल को ₹110 लीटर बेंचते हों और स्वयं ₹50हजार प्रतिदिन का खाना खाते हों, जबकि एक गरीब परिवार की रुपए 50000 प्रति वर्ष की आय घटकर ₹20हजार रह गई हो। जो मोटे कमीशन के लिए पूंजी पतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मोटे लाभ के लिए देश के 30 करोड लोगों के रोजगार, धंधों, उद्योग व्यापार व्यवसाय उत्पादन को स्वयं ही नोटबंदी जीएसटी तालाबंदी से नष्ट करने पर तुले हों।
वह हरामखोर जालसाज देश के 140 करोड़ लोगों के 280 करोड़ हाथों का उपयोग करने की जगह जिन भेड़ियों के दिमाग में गिने-चुने 8-10 पूंजी पतियों का पेट भर कर 80 करोड़ लोगों को भिखारी बना कर कटोरा थमाने की इच्छा हो। उन वाचालों से जिनके पास हर समस्या का निदान करने की अपेक्षा जिन राक्षसों के मुंह की गंदी जवान में बहाने और बदतमीजीयां भरी हों, देश और जनता की उन्नति विकास और समृद्धि की कल्पना भी निरर्थक है।
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