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पारंपरिक खरीफ फसलें, कपास, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, उड़द, मूंगफली, तिल उपजाएं। सोयाबीन से मुक्ति पाएं।
वर्तमान में मध्य प्रदेश के अनेकों जिलों में केवल खरीफ की फसल के रूप में सोयाबीन की बोनी की जाती है जिससे लगातार ज्यादा या कम पानी गिरने की स्थिति में फसल तो बिगड़ ही जाती है साथ ही किसान को आर्थिक क्षति होने के साथ-साथ कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही है दूसरी तरफ यह सोयाबीन यथार्थ में तिलहन नहीं है, दलहन है। जिस में तेल नहीं होता उसके नाम पर देश को शुद्ध पामोलिन जो अमेरिका मलेशिया व अन्य देशों से आयात किया जाता है। जिसमें देश की भारी विदेशी मुद्रा खर्च की जाती है। को सोयाबीन में अधकुटा करके डुबोकर निचोड़कर रासायनिक पद्धति से डी हाइड्रॉडलाइजेशन करके फिल्टर करके बेचा जाता है। इसके कारण अनेकों बीमारियों का शरीर में जन्म हुआ जिसमें खासतौर से किडनी लीवर और हृदय पर बीमारों की संख्या बढ़ी।
फिर इस बार सोयाबीन का बीज साडे ₹8000 कुंटल है। वह भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है बेहतर होगा हमारे किसान भाई सोयाबीन को त्याग खरीफ की तिलहन फसलों में मूंगफली, तिल, वह हमारे पारंपरिक अनाज मक्का ज्वार बाजरा जो गेहूं से ज्यादा पौष्टिक हमारे देश की जलवायु के लिए ज्यादा उपयुक्त है के साथ मूंग उड़द की बोनी भी कर सकते हैं जो ज्यादा कम पानी से ज्यादा प्रभावित नहीं होती हैं। साथ ही मक्का ज्वार बाजरा के जो डंठल, कड़वी या राडा बचते हैं। उसका भरपूर उपयोग हमारे दुधारू पशुओं के उपयोग में भी साल भर काम आ सकता है। की बोवनी करें। जिसकी कीमत भी ज्यादा मिलेगी जैसा की मैंने दो साक्षात्कार एक साक्षात्कार देवास के उप संचालक कृषि कनेरिया जी और दूसरा धार के उपसंचालक कृषि जमरा जी का लेकर जाना और कृषक भाइयों के लिए प्रस्तुत किया है।
इसको देखें और समझे और अपने विचार मुझे भी प्रेषित कर सकते हैं।
निवेदक प्रस्तुति एवं लेखक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
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