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बाबा रामदेव ने टीका लगवाने के बाद 1000 डॉक्टरों की मौत की सच्चाई बयां क्या कर दी?
सारे अंतरराष्ट्रीय डब्ल्यूएचओ और उसकी सदस्य कंपनियां जो टीके के के नाम पर पिछले 20 वर्षों में लाखों करोड़ का खेल कर चुकी है। और राष्ट्रीय चुरकट गिरोह इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, बाबा के पीछे इसलिए हाथ धोकर पीछे पड़ गए की। हजारों करोड़ के टीके की खरीदी में और लगवाने में होने वाले भ्रष्टाचार का खेल ना बिगड़ जाए।
दूसरी तरफ दोनों ही अंतरराष्ट्रीय खास तौर से यूरोपियन ड्रग, इंजेक्शन वैक्सीन चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों से पिछले 40 सालों से हजारों करोड़ रुपए केवल झूठे प्रचार प्रसार कर, उनकी दवाइयों को बिकवाने के लिए तरह-तरह की दहशत फैलाकर हथकंडे अपनाकर माल बिकवाने के लिए हजारों करोड रुपए का कमीशन हजम कर जाती हैं।
हरामखोर जालसाज सफेद एप्रिन के गिद्धों का गिरोह यह नहीं बता रहे कि वह 1000 डॉक्टर से ज्यादा और हजारों आदमी टीका लगवाने के बाद कैसे और क्यों मर गए? और तीसरी लहर में टीके के बाद जो मौतों के परिणाम सामने वाले आने वाले हैं। क्या वह इससे भी ज्यादा भयावह होंगे।
फिर सरकार ने हीं टीका लगवाना जब एच्छिक कर दिया है।
तो टीका लगवाने की जनता और खास तौर से आदिवासी क्षेत्रों में जिनका डीएनए पिछले 300 सालों से अंग्रेजी ने आकर ईसाइयत फैलाने के बहाने बदला। जिसके डाटा डीएनए व रक्त के नमूने, व अन्य सामग्री व शारीरिक संरचना से संबंधित अन्य जानकारी के लिए दुनिया की बड़ी बड़ी ड्रग कंपनियां, चिकित्सीय प्रयोगशालायें, वर्षों से चोरी छुपे वहां मिशन के बहाने नमूने लेने का कार्य करती रहती हैं। पर सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय जानबूझकर मोटा धन खाकर चुपचाप रहता है।
उन पर टीका लगाने की जबरदस्ती क्यों की जा रही है जब वहां कोई बीमारी नहीं फैली मौतें नहीं हुई, तो मात्र मोटी कमाई के लिए? क्यों ऐतिहासिक आदिवासी नस्ल को बर्बाद करने पर तुले हैं?
जनता को, बुद्धिजीवी संगठनों को इस के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए।
निवेदक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
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