यह लड़ाई एलोपैथी और आयुर्वेद कि नहीं।
देसी और विदेशी की है।
यह लड़ाई बाबा और डॉक्टरों की नहीं।
आखिर आयुर्वेद की हजारों साल पुरानी चिकित्सा की अनुभूत सिद्ध पद्धति, को उपयोग ना करके बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बनाई सैकड़ों दुष्प्रभाव युक्त रसायनों की दवाइयों, इंजेक्शन, वैक्सीन, चिकित्सा उपकरण, सैकड़ों प्रकार की जांचें, शल्य चिकित्सा 99% मामलों में आवश्यक नहीं फिर भी क्यों थोप कर लूटा जाता है जनता को और छोटे से क्लीनिक चलाने वाला डॉक्टर भंडारी बड़ा मेडिकल कॉलेज खोल लेता है कैसे कहां से आया इतना पैसा ऐसे ही देश और दुनिया में एलोपैथिक डॉक्टरों का कारोबार देखा समझा जा सकता है।
यथार्थ में यह लड़ाई हमारे अस्तित्व के गुलाम होने की है।
बाबा ने बिल्कुल सच बोला है। बेशक उसका अंदाज गलत था।
परंतु इतना भी गलत नहीं था।
कि अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रकारी दवा कंपनियों डब्ल्यूएचओ के दबाव के कारण उस पर पूरा माहौल बनाकर गिरफ्तार और f.i.r. फाइल की जाए जाए।
एलोपैथिक डॉक्टर यथार्थ में डॉक्टर नहीं कसाई बन चुके हैं। 99% बीमारियों का इलाज बड़े आसानी से बहुत कम खर्च में हो सकता है। पर जानबूझकर उसको चांडालों सफेद पोश अप्रेन के गिध्दो द्वारा अपनी मोटी कमाई के लिए फैला कर बड़ा करके 99% कैसेस मैं जहां आसानी से औषधियों से इलाज हो सकता है। मोटी बसूली चीरफाड़ करके बीमार को उसके परिजनों को नीलाम होने तक लूट के पाखंड की लड़ाई है।
जिसे भारत की धरती पर इस एलोपैथी के दंश को गरीब से गरीब और अमीर से अमीर हर आदमी ने झेला, महसूस किया, लुटा, लुटाया और भोगा है।
हम सबको
इसे भी समझिए।
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