यदि आप का जन्म खाने-पीने और मुर्दों की तरह सोने के लिए नहीं हुआ है और आप इंसान हैं, तो अपना अस्तित्व सिद्ध कीजिए। अन्यथा धरती के आप जानवरों से भी निम्न प्राणी है। ।
फिर मृत्यु तो 1 दिन निश्चित ही है। वह कभी भी आयेगी ही, तो फिर सच को, सच कहने से, सुनने से परहेज क्यों और कैसा? यदि आप का अस्तित्व है, तो सिद्ध कीजिए। सच को सच कहने, सिद्ध करने जोर से चिल्लाइये।
वर्तमान में चल रहे पाखंड के खिलाफ आवाज उठाइए।
हर बदलते मौसम में सर्दी, खांसी, जुकाम छींक, अनेकों प्रकार के बुखार, जिससे सांस लेने में परेशानी, सिर भारी होना, शरीर व हाथ पैरों में ऐंठन, निराशा, शरीर में कमजोरी, भूख खत्म होने, वायरल फीवर, फ्लु, स्वाइन फ्लु, मलेरिया, निमोनिया, स्वांस,दमा, अस्थमा, क्षय रोग होते आए हैं। तापमान के अचानक घटने बढ़ने से, पाचन बिगड़ने से, पेट में दर्द, मरोड़ उठने दस्त लगने मोतीजरा, पीलीया आदि बीमारीयां सहस्त्रों शताब्दियों से होते आये हैं।
जिसकी पर्याप्त औषधियां हमारे आयुर्वैदशाला के रूप में हमारे घरों के रसोईघर में मसालों के रूप में पाई जाती हैं।
बदलते मौसम में अदरक, हल्दी, लहसुन, लौन्ग और गुड़ मिलाकर पीने से भी सब ठीक होता रहा है।
पीलीया में हल्दी बिल्कुल न लेकर पेट के रोगों में पपीता सेवन करेें।
फिर इस देश की 140 करोड़ की आबादी में अगर 3लाख बच्चे पैदा होते हैं। तो डेढ़ लाख आदमी मरेंगे भी। तो नया क्या हो गया?
अगर महामारी है, तो मरने वाले डरपोंक, निम्न मध्यमवर्गीय, मध्यमवर्गीय हिंदू ही क्यों हैं?
करोंड़ों सफाई कर्मी, भिखारियों, मजदूरों को साल भर में कुछ भी नहीं हुआ।
अगर महामारी थी तो 1 साल में 10-20 करोड़ लोगों को सड़कों पर बाजारों में खेतों में खलिहान में उद्योगों में घरों पर कार्यालयों में चलते फिरते मर कर गिर जाना चाहिए था। लाशों के अंबार लग जाने चाहिए थे।
पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। अर्थात महामारी नहीं है।
दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पाखंड ने हीं खाद्य पदार्थों की पैकिंग में ताकि जल्दी खराब ना हो व उनका स्वाद ना बिगड़े, व उसमें कीड़े न पड़ें। घातक रासायनिक प्रिजर्वेटिव्स, कीटनाशक मिलाकर महंगे बेंच ने शुरू कर दिए। इससे भी मधुमेह, ह्रदय, लीवर, किडनी के रोगों से लेकर कैंसर जैसे घातक रोग होने लगे। इसके लिए भी उन्होंने पहले से तैयारी कर रखी थी महंगी दवाइयां इंजेक्शन उपकरण बेचने के षड्यंत्रों को पूरा किया।
यह सारी महामारी उसी का हिस्सा है।
प्राकृतिक तरीके से जीवन जीना शुरू करें पैकेज्ड फूड को बिल्कुल त्याग दें। प्राकृतिक भोजन लेना शुरू करें।
व्यायाम करें और स्वस्थ रहें, डरें नहीं।
सुरक्षित रहें और अपने परिवार, समाज, नगर प्रदेश व देश, दुनिया को सुरक्षित रखें।
दूसरों को इस लेख को भेजकर जागरूक करें अपने हकों की लड़ाई लड़ने के लिए सड़कों पर उतरे और पाखंड के विरुद्ध जनता को जागरूक करें।
प्रस्तुति लेखक एवं निवेदक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
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