पत्रकार हो, और अपनी अक्ल् की जो चवन्नी है अपनी जेब में रखो अगर बुजुर्गों ने यह बात कही है तो क्या गलत कहा है, कितने पढ़े लिखे हैं, अपुुन?
कितने कानून जानते हैं कितने सामाजिक शास्त्र पढ़े हैं शाम को 4 पेग फोकट की दारु पीने के बाद में बहुत ज्यादा ज्ञानी बन जाते हैं। ना।
आप बहुत ज्ञानी है। ना।
तो फिर 11 महीने से 140 करोड़ जनता की आंख के आंसु पौंछने क्या किया? सरकारी भांड और भड़वे की तरह हां में हां कर रहे हो।
जबकि पहले दिन 22मार्च 20 से लिख और बोल रहा हूं, कि सारा पाखंड बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मोटे लाभ का षड्यंत्र है और 11 महीने में वह स्थिति स्पष्ट हो चुकी है।
परंतु अपनी चवन्नी की अकल वहां नहीं लगाएंगे।
जनता की लड़ाई नहीं लड़ेंगे। परंतु छोटे-छोटे मुद्दों पर अपना ज्ञान पेलेंगे।
तुम्हें पका पकाया दे रहा हूं।
वह तो खा नहीं पा रहे हो।
पत्रकार होने का अगर चोला ओढ़ा है।
तो पहले जनता की आंख का आंसू पौंछना सीखो। और सिद्ध करो कि तुम सचमुच जन हितेषी पत्रकार हो।
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