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भेड़िया झुंड पार्टी के मोदी, अमित शाह जिस प्रकार से जनता से झूठे वादे और दिवास्वप्न दिखा कर के जिन हिंदुओं के वोट लेकर सत्ता में आए।
हरामखोर चांडाल राक्षसों की फौज कितनी बेशर्मी और कृतघ्नता के साथ देश की जनता और हिंदुओं की बर्बादी कर रहे हैं। उसी तरह से किसानों की जमीनें हड़पने और सारे खाद्य व्यवसाय पर पूंजी पतियों का कब्जा करवाने के लिए जो कानून थोपे।
उनके विरुद्ध जो किसानों ने आंदोलन कर रहे हैं। उन अपने कुकर्मों को सही सिद्ध ठहराने के लिए किसान आंदोलन के विरुद्ध भी जनता को कैसे भड़का रहे हैं। इनका दुष्प्रचार के लिए कुख्यात आईटी सेल के चांडाल सूकरों का गिरोह अपने किसान आंदोलन में किसानों को बदनाम करने के लिए किए गए हर दंगे, फसाद, लाल किले पर झंडा फहराने, पहले किसानों को ट्रैक्टर रैली निकालने की छूट देकर बाद में उन को घेरने मारने पीटने और 100 से ज्यादा किसानों की हत्या कर गायब कर देने के षड्यंत्रों को छुपाने, जनता के ध्यान को बंटाने हर तरह से लगातार दुष्प्रचार में लगे हुए हैं। अपने षडयंत्रों के बारे में सारे घोर नीच चांडालों का मुंह बंद है। आखिर जब सारे षड्यंत्र सामने आ गए। तो देश की पनोती मोदी से लेकर सारे भेड़िए नेता और चड्डे वाले चुप्पी साध कर के बैठे हो। और किसानों को बदनाम और मारपीट करने गई पुलिस को हकीकत समझ में आने पर जब उन्होंने बगावत कर जय जवान जय किसान के नारे लगा दिए। तो भेड़ियों के झुंड को चारों तरफ से किरकिरी होने व घिर जाने के बाद में नए षड्यंत्र रचे जाने लगे हैं।
जो लोग यह बोलते हैं किसानों को वह हमारा अन्नदाता नहीं है उनको कसम है अपने मां-बाप की कि वह कल से हरामखोर सूअर के पिल्ले, सब्जी भाजी अनाज दालें आदि सब खाना बंद कर दें और अपने पैसे से दूसरी अन्य वस्तुएं खाना शुरु कर दें।
वह किसान ही है जो जिंदगी में सबसे बड़ा जुआ खेलता है। किसान ही है जो रात को 2:00 बजे जाकर खेतों में सिंचाई करता है अपनी फसलों की जानवरों से रक्षा करता है गर्मी पानी बरसात में खेतों में जाकर बुवाई निराई गुड़ाई करके आपके लिए भोजन धरती की कोख से निकालकर आपके चंद सिक्कों के बदले में आपके पेट भरता है। अगर आपकी औकात तो ठंड और बरसात में रात में 12:00 बजे निकल कर दस वीस किलोमीटर पैदल कच्ची जमीनों में जंगलों में घूम कर भी आ जाइए। पर यह उसका रोज की दिनचर्या है। आपकी 1 दिन जाने में टपक जाएगी। वह यह सब कुछ 4 महीने तन मन के साथ उधार लिये धन से जमीने जोतता है। बीज खाद लेने के लिए लाइन में लगकर लाठियां खाता है। 4 महीने स्वयं और अपने परिवार को खेती में झोंके रखता है। और फसल आने पर भी कभी पानी, कभी पाला गिर जाता है। कभी फसल खराब हो जाती है। कभी फसल अगर बाजार में पहुंच जाती है। तो ओने पोने में बिकती है। उसका कर्ज भी नहीं उतर पाता है। बच्चों की शिक्षा घर में मां बाप की चिकित्सा वस्त्र भोजन के लिए पैसे बचने की तो दूर कर्ज में दबने के कारण आत्महत्या कर के मर जाता है।
सोचिए जब यह फसल मंडियों में नहीं बिकेगी और यह घोर नीच चांडालों की औलाद, मंडियों के खत्म हो जाने पर सारी फसलें ओने पोने में खरीद कर अपने गोदामों में भर लेंगे। जैसा कि इस वर्ष हुआ। मंडिया बंद होने की आड़ में 1925 रुपए की एमएसपी का गेहूं, महामारी की आड़ में मंडी बंद करवा कर, मंडी के बाहर पूंजीपति अडानी ने अकेले देवास में ही हजारों टन गेहूं रु1400,1500 क्विंटल में खरीदा था। और अब ₹4000 से ₹5000 कुंटल में आटा बेंचा जा रहा है।
तब क्या होगा आपका। जब सारा गेहूं अडानी के गोडाउन में पहुंच जाएगा तो। जिसके लिए किसान संघर्ष कर रहे हैं। 70 दिन से।
हरामखोर चांडालों किसानों को गाली बकने से पहले अपना चेहरा और अपने घर की रसोई देख लेना जो उसकी मेहनत से भरी हुई है।
और तुम्हारा चेहरा खिला हुआ है। हरामखोर, चुरकट कृतघ्नों अपने मां बाप से भी यही बोलते हो। तुमने हमें मौज मौज में पैदा किया। तुम मरो, बिको या नीलाम हो, हमारी बला से, हमें तो अच्छे वस्त्र, चलाने के लिए गाड़ी, अच्छा भोजन, अच्छी मौज, मस्ती, अच्छी शिक्षा दिलवाओ। क्योंकि तुमने हमें पैदा किया है। हम तुम्हारे घर में पैदा होकर तुम्हारे ऊपर एहसान कर रहे हैं। सुकरो की फौज।
धन से रोटी खरीदी जा सकती है। पर धन नहीं खाया जा सकता। खाने के लिए अनाज ही लगता है। जो किसान पैदा करता है।
अगर उसको सम्मान नहीं दे सकते तो कम से कम घोर नीच बदतमीजों उसके प्रति अपमान भरे शब्द भी असहनीय है।
बस इंतजार कीजिए। जब सारी सेना पुलिस अर्धसैनिक बलों, जो किसानों के ही बैटे हैं। को सच्चाई समझ में आने पर जो हाल इंदिरा का हुआ वह मोदी और शाह का भी हो सकता है।
पुलिस सेना के जवानों को नेताओं की जेब से वेतन नहीं देते हैं। वे जनता की जेब से वसूले गए करों से वेतन जनता की देश की सुरक्षा के लिए लेते हैं। ना की इन पूंजीपतियों के रखैल इन कुकर्मियों सूकर चांडल नेताओं, जो जनता पर अत्याचार करते हैं। के इसारे पर नाच कर अपने मां-बाप को मारने पीटने और बदनाम करने के लिए नहीं।
यह ख्याल रखना, तुमको तुम्हारी, सारे भेड़ियों की और शरीर चड्डी वालों को उनकी औकात समझ में आ जाएगी।
आम नागरिक है समझ ले यह आंदोलन किसानों का ही नहीं आम नागरिक का है यदि किसान आंदोलन असफल होता है तो 120 करोड़ लोग बेरोजगारी और भूख से मरने से पहले, सड़कों पर उतर कर आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे या याद रखना।
निवेदक प्रस्तुति एवं लेखक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
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