देश के सभी दैनिक समाचार पत्रों, न्यूज चैनल के भड़वे, जो यथार्थ में बड़े भूमाफिया, कॉलोनी माफिया, होने के साथ-साथ, सरकारी ठेकों में, बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारोबार में उनके दो नंबर के, व अन्य राष्ट्र विरोधी, जन विरोधी, पर्यावरण विरोधी, प्रदूषण कारी घातक कामों को छुपाए रखने मैं उनके पत्रकार व स्वयं समाचार पत्र मालिक भी मोटे मोटे लेन देन में सामने से नहीं तो पीछे से वसूली करते रहते हैं। दूसरी तरफ बड़े छोटे समाचार पत्रों में ज्यादा उच्च शिक्षित ज्ञानी ध्यानी गंभीर लेखकों को जानबूझकर नहीं रखा जाता। ताकि उन पत्र मालिक सेठियों को मोटी आय बराबर बनी रहे।
स्वभाविक है, यह भेड़िए भी पूंजीपतियों सत्ताधीशों के गुलाम उनके सामने अपनी दुम हिलाते हुए टुुकड़ोंं की ताक में खड़े रहते हैं। इन्हें जन हितों से कोई मतलब नहीं।
वर्तमान में नई दुनिया, भास्कर, पत्रिका जैैसे समाचार पत्रों को छोटे-छोटे उद्योगों, दुकानों सेवा प्रदाताओं को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए नष्ट करने में अपनी खासी भूमिका निभा रहे हैं।
हरामखोरों की फौज हर पैकेज्ड खाद्य सामग्री में, कीटनाशकों घातक रसायनों का, पॉलिथीन पैकेजिंग सामग्री का प्रयोग करके हमारी दूध मुंही पीढ़ी से लेकर बुजुर्गों तक को गंभीर रोगों का शिकार बना कर अस्पतालों की तरफ धकेल रही है। उस खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम06 केे सबसे घातक कानून को आज तक खत्म करने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। जबकि सबसे घातक कानून को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारे पर लगाकर देश की जनता को बर्बाद किया जा रहा है। उसके पीछे यह हरामखोर जालसाजों की फौज लोगों को कभी नहीं बताती और फिर इन सब के पत्रकार उनके सेठिये यह सब आसमान से टपके थे। हरामखोर सूअरों की फौज।
किसान आंदोलन पर सारे के सारे यह प्रसार माध्यमों की भूखी फोज कैसे शांत बैठी है सच को नहीं बता रही जनता को और
फिर लोग बेरोजगार होंगे भूख से मरेंगे तो तुम्हारा पेपर खरीदेगा कौन?
और तुम भी जनता का खून पीने बैठे हुए हो, पूंजीपतियों और सत्ताधीसो की रखैल बन कर तो फिर भूखेरेे भेड़ियों तुम्हारा औचित्य क्या है।
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