मप्र में प‍ि‍छले 30 साल से 1851 तेंदुए 927 बाघ के झूठे आंकड़ेे, व‍ि व न‍ि के $2000करोड़ हजम करने

मध्यप्रदेश में 1998 में दिग्विजय सिंह की सरकार ने एक काम जरूर अच्छा किया था। मध्यप्रदेश में सूचना का अधिकार 1998 में लगा दिया गया था। ताकि घोर भ्रष्टों की जानकारी आम जनता इकट्ठी करके सरकार तक पहुंचाएं सरकार के मंत्री अधिकारी उससे वसूली कर सकें। रउसके अंतर्गत एक पत्र मैने पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ भोपाल को दिया। जनवरी 1999 में कि कितने बाघ और तेंदुए मध्यप्रदेश में किन-किन जिलों में है। फरवरी 1999 में 1सीसीएफ साहनी ने भोपाल के तुलसी नगर के कैंपस में जानकारी के संबंध में मुलाकात हुई। मैंने उनसे पूछा कि आपके यहां जो पत्र दिया था कितने तेंदुए और बाघ आपके मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं उसकी जानकारी चाहिए। उन्होंने मुझे एक 1991 में छपी हुई किताब दी जिसमें 1851 तेंदुए 927 बाघ की जानकारी छपी थी मैंने उनसे पूछा तब से लेकर 8 साल में शेर और तेंदुए का शिकार मौत नहीं हुई क्या? और आप गिनती कैसे करते हैं? तो वो बोले मैं एक बात का एक ही बार जवाब दूंगा। और बताया पंजों से, विष्ठा से जानवरों की उम्र और पता लगाया जाता है दूसरी तरफ एक शेर या तेंदुए की पांच एंगल से फोटो खींच लेने पर तो मैंने कहा 5 हो गए। बोले मुझे यह भी सच है पर मैं कोई बात नहीं करूंगा इस पर। इस टाइगर स्टेट के नाम पर 1990 से मध्य प्रदेश सरकार को $2000 उस समय रु1,20,,000 करोड़ थे और अब डेढ़ लाख करोड़ होते हैं। जो विश्व वन निधि या वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड से अमेरिका से प्राप्त होता है यथार्थ में यह सारी कहानी उस की है। फिर मैं अपनी बात पर आया मैंने पूछा मैंने डब्ल्यू डब्ल्यू एफ का जो फंड आता है $2000 करोड़ वह इन जानवरों पर कैसे खर्च होता है। जिसकी जानकारी मुझे आंतरिक सूत्रों से प्राप्त हुई थी कि वह धन यथार्थ में पूरा का पूरा वन विभाग के मंत्री से लेकर उच्च अधिकारियों द्वारा द्वारा हड़प लिया जाता है और बिल लगाने के नाम पर चड्डी बनियान तक के बिल लगाकर सारे फर्जी ब‍ि‍लो के माध्यम से डब्ल्यू डब्ल्यू आपको भेज कर क्षतिपूर्ति प्राप्त कर ली जाती है। वह कहानी मैंने अपने समाचार पत्र समय माया में 4 से भाग देकर शादी और पूरे फर्जीवाड़े की पोल उसमें उसी चार्ट के अनुसार दी जैसा चार्ट की किताब में छपा हुआ था उज्जैन में इन्होंने बाघ और तेंदुए दिखाएं मैंने उसमें लिखा जो उज्जैन में जंगल नहीं तो बाघ और तेंदुए क्या कलेक्टर सीसीएफ डीएफओ विधायकों सांसदों मंत्रियों या सरपंच के घर में पलते हैं। जालसाज हरामखोर इंडियन फारेस्ट ईटिंग सर्विस के ऑफिसर उनको पूरे राज्य में जाकर निमंत्रण देकर रोज अफगानी बिरयानी खिलाते हैं जो सारा पैसा 120000 करोड उस पर खर्च होता है जबकि हर महीने जबलपुर सतना कटनी के स्टेशनों पर दो-चार बाघ और तेंदुए की खालें पकड़ी जाती हैं तो वह खालें क्या आसमान से टपकती हैं। और सारा झूठ पाखंड है 200 सवा 200 से ज्यादा शेर और चार चार सौ साडे 400 से ज्यादा तेंदुए मध्यप्रदेश में नहीं है। क्योंकि समय माया के प्रारंभ से लेकर वर्तमान तक में समाचार पत्र की प्रतियां देश में सभी दूतावासों को भेजता रहा हूं वह कहानी जाकर लंदन टाइम्स में वैसी की वैसी आंग्ल में ट्रांसलेट कर चिपका दी गई। जिसे मैंने ब्रिटिश लाइब्रेरी जो जीटीबी कंपलेक्स में सन 2008 तक हुआ करती थी उसमें वहां का सदस्य होने के कारण, क्योंकि मुझे हवाई जहाज उड़ाने का शौक था और किताबें मेरे पास थी नहीं। इसलिए वहां से किताबें लाकर उनकी फोटो कॉपी करवा कर लौटा दिया करता था। अब चूंक‍ि पत्रकार हूं। तो वहां जाकर ब्रिटेन के समाचार पत्र पढ़ने की खुजली स्वाभाविक थी। तो वह मेरा समाचार मैने पढ़ा। और एक मित्र जो इंग्लिश मीडियम का पढ़ा लिखा था नावेद खान जो अभी भोपाल में समाचार पत्रिका निकालता है। को व वहां के स्टाफ को भी पढ़वाई। ताकि पुष्टि की जा सके। फिर वही कहानी टाइम्स ऑफ इंडिया में अप्रेल 99 में टाइम्स ऑफ इंडिया नई दिल्ली में भी छप गई। मई 1999 में मैं पीसीसीएफ प्रसन्न कुमार मिश्रा के पास उस पत्र की लिखित जानकारी के लिए फिर पहुंचा और मैंने बताया। कि मैं समय माया समाचार पत्र निकालता हूं और मुझे उसके लिए वह जानकारी चाहिए। तब प्रसन्न कुमार मिश्रा को जैसे ही मालूम पड़ा कुर्सी से उठ के चिल्लाते हुए अब क्या चाहिए पूरी दुनिया में छपवा दिया ना। माहौल गरम देखकर मैं अपनी पीठ स्वयं ही थपथपाते हुए बाहर निकला कि नहीं पूरी दुनिया में मध्य प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार की जानकारी फैल चुकी है। जो मेरी लिखी हुई थी। बाद में मालूम पड़ा। कि वह खबर पूरी दुनिया में छपने से1999, 2000 और 2001 तक वह विश्व वन्य प्राणी निधि का $2000 करोड़ मिलना बंद हो गया था। और अपने पाठकों को बता दूं कि वह 1999 की किताब और उसमें 927बाघ और 1851 तेंदुए यथावत अभी तक चल रहे हैं। जबकि 4 दिन पहले खबर छपी की 1681 तेंदुए सरकार बता रही है। तो मेरे पत्रकार मित्रों और बुद्धिजीवी पाठकों को समझ में आ गया होगा टाइगर स्टेट का दर्जा पाने के पीछे की असली कहानी क्या है? और अपना कंस मामू टाइगर स्टेट की बात करता है जिसके पीछे डेढ़ लाख करोड़ रुपए की मोटी कमाई चुपचाप हजम कर जाने की है। निवेदक प्रस्तुति एवं लेखक प्रवीण अजमेरा समय माया समाचार पत्र इंदौर www.samaymaya.com
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