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मप्र में खाद्य पदार्थों में मिलावट, स्तरहीन, नकली, मिलावट पर आजीवन कारावास की सजा का कानून बनाकर क्या केवल पूंजी पतियों का पेट भरने के लिए उनका व्यवसाय बढ़ाने चमकाने और छोटे व्यापारियों को खत्म करने का षड्यंत्र नहीं या उनके इशारे पर उनके प्रतियोगी छोटे दुकानदारों को उद्योगों को समाप्त कर उनका पूर्ण एकाधिकार स्थापित करने व जनता को लूटने का कानून है।
यह क्योंकि यह बात या मिलावट बताना बड़े आसनी से कर दी जाएगी। किसी भी खाद्य पदार्थ का नमूना लेकर 10 ₹20000 खर्च कर दिया उन्हीं का बैठाया हुआ पूंजी पतियों का पाला हुआ खाद्य विश्लेषक जिस गजट नोटीफाइड होना चाहिए उसके लिए एमएससी केमिस्ट्री के साथ वरिष्ठ खाद्य निरीक्षक बनने के लिए कम से कम 20 साल का अनुभव होना चाहिए। वर्तमान में तो मध्य प्रदेश सरकार के पास कोई ऐसा वरिष्ठ विश्लेषक की श्रेणी में कार्यरत पात्र व्यक्ति ही नहीं है तो नमूने मिलावटी अमानक स्तरहीन हैं। और जो उज्जैन के नगर निगम का मीणा जो खुद फर्जी जाति सर्टिफिकेट पर नौकरी कर रहा है। और लाखों रुपए लेकर नमूने पास फेल करने का खेल करके कमा रहा है वह खुद ही फर्जी है। जिसके बारे में समय माया आज से लगभग 8-10 साल पहले ही छाप चूका है। जिसके जाति प्रमाण पत्र मांगने पर खाद्य नियंत्रक ईदगाह हिल्स भोपाल ने आज तक नहीं दिए।
इन्हें कौन सही सिद्ध करेगा? दूसरी तरफ सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि नमूने केवल छोटे उद्योगों खाद्य विक्रेताओं जो महीना नहीं दे पाते हैं उन्हीं के ही लिए जाते हैं बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो इस कानून की आड़ में जो सन 2006 में बनाया गया था।
पूरे षडयंत्र के तहत छोटे उनके प्रतियोगी दुकानदारों उद्योगों खाद्य पदार्थ की प्रसंस्करण इकाइयों को खत्म करने के लिए ही बनाया गया था।
बेशक भेड़िया झुंड पार्टी की सरकार पूंजीपतियों के इशारे पर नाच कर उनके मल मूत्र के सेवन से ही पल रही है। चाहे वह चांडाल मोदी हो अमित शाह या शिवराज अब यह बात मैं नहीं दिल्ली की सीमाओं पर बैठे 5 लाख से ज्यादा किसान और देश की 70% जनता जो अंधभक्त नहीं है कह रही बता रही और समझ रही है।
फिर 35 साल से सांची और अमूल दूध के और उसके बनाए दूध के अन्य खाद्य पदार्थों के नमूने क्यों नहीं लिए उनसे सरकार ने स्वयं सन 2008 में विधानसभा में स्वीकार किया।
फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पैक्ड बंद पानी, शीतल पेय जूस आदि में जिसके अंदर कीटनाशक डालकर जो सन 2006 में पकड़ा गया था। मिलाना बंद करने की अपेक्षा कानून ही बदल दिया गया। से लेकर पार्ले हिंदुस्तान/युनिलीवर, जिओ, वॉलमार्ट, बिग बाजार कोको कोलाआईटीसी, खाने के तेल के सैंपल जो शुद्ध पाम आयल होते हैं क्यों नहीं लिए जाते। आंख मींच कर कैसे पास हो जाते हैं यदि लिए भी जाते हैं तो।
तो भेड़िया ढूंढ पार्टी क्या आपने पुंजीपति मित्रों की रखैल बन कर उनकी सुपारी लेकर छोटे उद्योगों व्यापारियों खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को इस प्रकार खत्म करने का षड्यंत्र नहीं रच रही है।
वैसे भी मेरी परिभाषा में
''कानून धूर्तो के बनाए शब्दों के माया जाल है। जो अपनों के पोषण और निरीहों के शोषण के काम आते हैं।''
ऐसे कानून मेरी परिभाषा का औचित्य सिद्ध कर देते हैं।
सभी व्यापारी भाइयों को चाहिए कि इस कानून के खिलाफ भी आंदोलन करें। कानून के अनुसार किसी खाद्य प्रसंस्करण इकाई उद्योग या विक्रेता का कोई सामान खराब है मिलावटी है नकली स्तरहीन है, तो कानूनन उसके पहले नमूने लिए जाने चाहिए।
उसको बताया जाना चाहिए कि उसने क्या गलती की है कैसे सुधार होगा ना कि हरामखोर चांडाल डकैत कलेक्टर कमिश्नर खाद्य सुरक्षा, सीएमएचओ अधिकारी जिनका 1 सूत्री कार्यक्रम "धन दो या मरो' चल रहा है। के कानूनी अधिकार ग्रुप में केवल नमूने किए जा सकते हैं तत्काल फैक्ट्री तोड़ने का षड्यंत्र सारे छोटे व्यापारियों को दहशत देकर मार कर बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकाधिकार करवाने का षड्यंत्र का हिस्सा है।
जिसके विरुद्ध सबको बाहर आकर आंदोलन करना ही पड़ेगा अन्यथा किसानों की तरह आपको भी खत्म करने का षड्यंत्र चांडाल घोर भुखेरे शिवराज सरकार ने कानून के हिसाब से कर दिया है।
लेखक निवेदक एवं प्रस्तुति
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र इंदौर
www.samaymaya.com
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