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कौन सा माई का लाल जो धरती पर है?
शासकीय सेवक प्रधानमंत्री से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशोो से ग्राम पंचायत का सरपंच, सचिव तक पहले अपने गिरेबान में झांके और फिर टिप्पणी करें।
यदि सभी ईमानदार होते तो कानून की जरूरत ही क्यों पड़ती दूसरी तरफ आखिर सूचना के अधिकार में आवेदन आते ही क्यों हैं क्योंकि केंद्र के और राज्य सरकारों के सभी मंत्रालयों के सभी विभागों में आज तक अपनी गर्दन बचाए रखने अपने कुकर्मों को छुपाए रखने धारा 4 पूरी इसलिए नहीं की। हम आवेदन तो छोड़, धारा 4 पूरी होती, जिसे हर मंत्रालय के हर विभाग को 12 अक्टूबर 2005 के पहले ही पूरा करना था अभी तक क्यों नहीं की सारा पैसा हजम और बाप की जागीर नहीं जनता का धन जिसे अपनी मनमर्जी से लूटो खाओ काम पर आना हो तो आओ और नहीं तो मौज मनाओ यह भी भ्रष्टाचार का हिस्सा है यदि धारा 4 पूरी होती तो हम वहीं से सारी जानकारी ले लेते आवेदक की शक्ल देखने और दिखाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
और फिर आयोग का संधि विच्छेद आय का योग होता है। और देश काम को लंबित करना ठंडा करना और भ्रष्टों आरोपियों को बचाना ही तो है आयोग बना इसलिए जाते हैं अन्यथा जिला न्यायालय में एक कक्ष न्यायाधीश सूचना अधिकार की सुनवाई के लिए वहां पर भी बनाया जा सकता था। फिर सूचना आयोग में केंद्र से लेकर राज्यों तक चुन चुन कर बैठाया अपने ही चहेतों व घोर भ्रष्टों को जाता है। ताकि वे अपने पद की आड़ में आय का और जीवन यापन का एक महत्वपूर्ण स्तर पर पहुंचकर दुरुपयोग कर सकें।
पंडित जी शायद ये जवाब पूरा लगेगा।
सूचना अधिकार अधिनियम के सभी शासकीय कर्मचारी अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आयोग के सदस्य सब बलात्कारी हैं। उसमें एक आप भी हैं।।
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