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आखिर आधी शताब्दी से ज्यादा समय से जन धन से निर्मित सरकारी संपत्तियों को अपने बाप की जागीर मान किसी को भी एक रु में कैसे और क्यों हस्तांतरित किया जा रहा है? कहानी यहां से शुरू होनी चाहिए।
आप ने ईवीएम के जालसाजी से सत्ता हथिया या संभाल ली तो आप सत्ता के ट्रस्टी है। ना की मालिक।
आपको ये अधिकार किसने दे दिया कि आप सार्वजनिक संपत्तियों उपक्रमों, सड़कों बिजली पानी व उन परियोजनाओं की संपत्तियों को किसी को भी बेच दे हस्तांतरित कर दें।
कोई संशोधन नहीं, कोई विचार नहीं, कोई वार्ता नहीं, कोई संशोधन समायोजन नहीं
सारे विद्युत जल व ताप विद्युत उत्पादन केंद्रों से लेकर वितरण स्टेशन सारे विद्युत खंभे जनता के धन से सार्वजनिक संपत्तियों पर निर्मित और स्थापित है। उन्हें अपनी मनमर्जी से अपने बाप की जागीर मानकर किसी को भी कैसे और क्यों हस्तांतरित कर सकते हैं।
इसके आगे कोई जवाब नहीं, प्रश्न नहीं और कोई संशोधन संयोजन व समायोजन नहीं होगा।
आपसे सत्ता नहीं संभालते बन रही है। तो आप सत्ता त्याग दीजिए।
सभी कर्मचारी इंजीनियर अधिकारी यूनियन संगठन एकत्रित होकर सारी विद्युत केंद्रों को जनता को बता कर ठप कर दीजिए और जनता से कहिए कि वह उनके साथ मिलकर इन भेडियो झुंड पार्टी के निजी करण विरुद्ध आंदोलन करके इन भेडियो को सत्ता से खदेड़ कर बाहर करें या निजी करण को तत्काल रोक दें।
अन्यथा परिणाम ना केवल विद्युत कर्मचारी संगठनों के साथ जनता का भी कोपभाजन का सरकार को शिकार होना पड़ेगा।
प्रस्तुति लेखक व निवेदक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र इंदौर
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