अजमेरा उवाच
आखिर एलोपैथिक जालसाज, डकैत, गिध्द डॉक्टरों का आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक यूनानी डॉक्टरों से इतना डर व बैैर क्यों?
एलोपैथिक डॉक्टर यथार्थ में अंतरराष्ट्रीय बहुराष्ट्रीय दवा, चिकित्सीय उपकरण मशीनें वैक्सीन इंजेक्शन निर्माता गिरोह की कठपुतली एजेंट है और इन सब का ड्रग चिकित्सीय उपकरण वैक्सीन इंजेक्शन मशीन ट्रायल का भारत सबसे बड़ा अड्डा और यह सारे एलोपैथिक डॉक्टर उन सब के चुप्पे जासूस एजेंट है भारत में जो देश की जनता को कीड़े मकोड़ों से ज्यादा हीन समझकर सारे हथकंडे अपनाकर जनता को पहले बीमार बनाते हैं फिर उन पर ड्रग, वैक्सीन इंजेक्शन मशीनें उपकरण आदि का ट्रायल कर करोड़ों रुपए कमा कर बीमारों को बाले बाले चटका देते हैं। भारत के निजी व सरकारी अस्पतालो से निकलने वाली 60% मृृृत देह औषधि परीक्षण का शिकार होती फिर भी मोटी कमाई बीमारों से भी की जाती है और उन कंपनियों से भी जिसके परिणाम सन 2008 में इंदोर मेंं पकड़े गये ड्रग ट्रायल कान्ड में सारे देश दुनिया ने देखें।
95% मधुमेह उच्च निम्न रक्तचाप, ह्र्दय किडनी लीवर कैंसर जैसी घातक बीमारियों में डाक्टरों की लापरवाहीीी, जालसाजी व लालच पूर्ण लूट की मानसिकता होती है जानबूझकर 95% मरीजों को आप पहले घातक दवाइयां देकर बीमार बनाते हैं और फिर उनको मानसिक दहशत देकर उनकी लाखों की लागत वाली शल्य चिकित्सा करते हैं और लूटते हैं, जनता को।
आप अमर फल खाकर नहीं आए मौत आपकी भी होगी तो जो आप की शरण में आते हैं उनको गिद्धो की तरह क्यों नोंच कर लूटते खाते हैं।
एलोपैथिक डॉक्टरों को अपने इतिहास देखना चाहिए आखिर आयुर्वेद जो दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है जहां मनुष्य को निरोगी बनाने के लिए प्राकृतिक, योग, मंत्र तंत्र, से आत्मीय और मानसिक शक्तियों को विकसित कर आत्मविश्वास जगाकर निरोगी बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाने से लेकर ह्रदय यकृत प्लीहा दंत मुख आदि की उपकरणीय जैविक जिसमें अर्बुद या कैंसर आदि के घावों के दूषित रक्त व मवाद आदि को साफ करने के लिए पानी एवं कीचड़ की जोंको का उपयोग किया जाता है यह भी शल्य चिकित्सा का ही हिस्सा है। महाभारत काल में जब 40 दिन तक लगातार युद्ध चलता रहा तो जो सैनिक दिनभर चोट, घाव व क्षत विक्षत हो जाते थे। परंतु उस समय संजीवनी बूटी से लेकर अन्य उच्च स्तरीय औषधियां ऐसी होती थी कि वह रात भर में सारे घाव भर जाते थे सारी चोटें और क्षत विक्षतपन सुबह तक दूर कर दिया जाता था। और वे घायल अधघायल सैनिक पुनः युद्ध मैदान में तरोताजा हो कर युद्ध लडते थे।
आपके बर्तमान आधुनिक एलोपैथिक शल्य चिकित्सा से लेकर बाकी सभी औषधियों और विज्ञान ने इतनी प्रगति नहीं की जो महाभारत काल तक भाारत ने आयुर्वेदिक पद्धति से की जाती थी इसके साथ ही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति जिसकी अनेकों विधाएं हैं जिसमें स्वमूत्र गोमूत्र चिकित्सा सुगंध चिकित्सा, ज्योतिषी रत्न चिकित्सा, सूर्य किरण व रंग, जल मृदा चिकित्सा जैसी विधाओं को अंग्रेजों ने आकर भारत से नष्ट कर विदेशों में ले जाकर अपने तरीके से रसायनिक योगिकों को विकसित कर एलोपैथिक का नाम देकर हमारे साथ दुनिया पर थोप दिया। आज से 100 साल पहले एलोपैथिक चिकित्सा का अस्तित्व कहां पर और क्या था? क्या उसके पूर्व भारत में सारे लोग जो बीमार अधघायल घायल होते थे तो सब मर जाते थे क्या। तो एलोपैथिक डॉक्टर आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं, सहस्त्रों वर्ष पूर्व से हमारे ऋषि-मुनियों से लेकर हमारे पूर्वजों ने हमारे घरों में कटे-फटे चोट से लेकर सर्दी खांसी बुखार आज की गहन बीमारियों के लिए भी पूरी आयुर्वैदशाला हमारी रसोई घर में सजा दी थी जिसका उपयोग आप आज भी मसालों के रूप में करते आ रहे हैं पहले आप अपने अस्तित्व को देखो फिर आयुर्वेदिक होम्योपैथिक यूनानी के डॉक्टरों को शल्य चिकित्सा से रोकने के लिए आंदोलन करना और अभी वर्तमान में जो महामारी का पाखंड चल रहा है अंत में एम्स से लेकर सारे छोटे-मोटे नर्सिंग होम सरकारी व निजी अस्पताल क्या वही आयुर्वेदिक काढ़ा पिला कर सब कोो ठीक करके भगा रहे हैं क्यों आपको तो वायरस भी नहीं मिला बीमारी भी नहीं मिली और चिकित्सा भी नहीं है आपके पास और आपके इस पाखंड में सचमुच अगर महामारी थी तो लोग अस्पतालों में ही क्यों मर रहे हैं घरों पर सड़कों पर बाजारों में फैक्ट्रियों में कार्यालयों में दुकानों पर लोग क्यों नहीं मरे और मरने वाले 90% केवल निम्न मध्यमवर्गीय और मध्यमवर्गीय हिंदू ही क्यों है दूसरी तरफ ना तो कोई सफाई कर्मी मर रहा है ना कोई भिखाारी मर रहा है ना कोई मजदूर मर रहा है तो आप यह महामारी के पाखंड की आड़ में क्या बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पेट भरने का षड्यंत्र नहींं कर रहे है। सरकार अगर कोई अच्छा काम कर रही है जो अपनी जाल साजियों चाल बाजियों को छुपाने के लिए एकत्रित होकर आंदोलन कर रहे हो आप पहले गिरेबान में झांक लो आप कितने ईमानदार सेवादार मानव सेवाओं के प्रति कितने समर्पित है।
उसके बाद आंदोलन करना।
निवेदक एवं प्रस्तुति
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर
www.samaymaya.com
|