अजमेरा उवाच
यदि सारे अन्याय को जनता बताने लगी तो फिर आपका औचित्य क्या है?
आप क्या देखते हो पत्रकार होने का पाखंड कर रहे हो क्यों ब्लैकमेलिंग से वसूली लिए।
आपको नहीं दिख रहा जनता भूख से मर रही है करोना का पाखंड चल रहा है।
आपको नहीं दिख रहा इस पाखंड में देश के 35 करोड बच्चे पिछले 9 महीने से घरों में बैठे हुए हैं। 30 करोड मजदूर, 50लाख वकील, 40लाख शिक्षक, 40लाख रेल कुली व करोड़ो अन्य बेरोजगार होकर घरों में बैठे हुए हैं। क्यों आप ही जनता की आवाज बनने की कोशिश कर रहे हो।
तो जनता की आवाज उठाई 9 महीने में याा सरकार की हुआ हुआ करते रहे ऐसे पाखंडी पत्रकारों ने ही जिन्हें चवन्नी की अकल नहीं कलम और माइक थामकर अपनी महानता दिखाने चले हो।
देखो जरा पंजाब में क्या हालत हो रही है। बड़े चैनल वालों की।
वह सारे जिनके पास चवन्नी कि अपनी अक्ल नहीं पत्रकार संगठन बनाकर सबको इकट्ठा करके उनकी अक्ल का उपयोग करके केवल लूट वसूली अहंकर पाखंड दिखाने का प्रयास
सच को सच कहने की अगर औकात नहीं हो तो चूड़ी पहन कर नृत्य कर लो।
जिनकी दिमाग और दिल में केवल भडवा गिरी करना ही लिखा हो बेहतर है यह दूसरे मेहनतकश ईमानदार हर संकट को भापकर जनता की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकारों को बदनाम मत करो।
बेशक वसूल नहीं करोगे तो खाओगे क्या ? परंतु अगर पत्रकार होने का पाखंड कर रहे हो तो स्वयं जनता के संकट को समझो और युद्ध के लिए तैयार रहो हर गलत को गलत कहने की हिम्मत दिखाओ।
सरकार की हुआ हुआ करने से बेहतर उसकी सच्चाई जनता के सामने लाकर जनता की लड़ाई लड़ो।
पहले यह संघर्ष करना सीखो और जनता को अपनी क्षमताओं उसकी रोजी रोटी कल्याण के लिए कलम चला कर जवान चलाकर सिद्ध करो कि आप उसका उसके आने वाली पीढ़ीयो के बेहतर भविष्य के हितों का युद्ध करने में सक्षम हो और उसके काम कर रहे हो।
तब पत्रकार होने का दंभ भरना। वरना बेहतर यह है इसे त्याग दो और दूसरे कोई रोजगार देख लो। कंगना ने वहां कपड़े खोलें। रिया ने वहां डांस किया प्रिया ने वहां चुम्मा लिया।
मोदी ने वहां थूका और चेलों ने वहां चाटा।
यह पत्रकारिता नहीं यह चवन्नी छाप पत्रकारों का दृश्यावली वर्णन होता है।
इसमें शामिल मत होइए। कानूनों का अध्ययन कीजिए। इतिहास पढ़िए वर्तमान देखिए और जनहित का भविष्य लिखिए। उसके बाद जनता कहेगी कि आप पत्रकार हैं।
वरना यह पाखंड बंद कर दो। मत नौटंकी में ज्यादा समय गंवाओ। वरना अर्णव की, व सारे बड़े चैनलों की जो सत्ता की जी हजूरी कर तलवे चाट कर हुवा हुवा चिल्लाने वालों की पोल खुलने के बाद जहां जाते हैं सड़कों पर लाते जूते और बदतमीजी या अपमान झेलना पड़ता है। इसको भी समझिये। पैसा मिले ना मिले, पर सिर पर कफन बांध कर जनहितों की लड़ाई लड़ना अति आवश्यक है।
तपिये, मंजिये और पारंगत होइये।
आखिर मैंने अकेले ठेका नहीं ले रखा देश दुनिया में जो 9 महीने से अकेले मैं चिल्ला रहा हूं हर बात सही सिध्द हो रही है ना केवल क्षेत्रीय प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वरन देश के 50 लाख से ज्यादा फुटपाथ पर और ठेले पर सब्जी बेचने वालों को कल भी जहरीली भाषा में ना केवल बचाया वरन उनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था पुख्ता की, लाखों मजदूरों को जो इंदौर से गुजर रहे थे, रोटी और बसों की व्यवस्था की किसानों को आंदोलन खड़ा कर दिया बेशक मुझे कुछ नहीं मिला पर इससे क्या फर्क पड़ता है।
करोड़ों लोगों की आंख के आंसू पीकर मैंने पेट भर लिया और उनकी मुस्कुराहट ने मेरे को जिंदगी दे दी यह क्या कम था। और मेरी सत्यता परखने मेरे वीडियो देख लेना samaymaya.com पर
मेरे पास करने के लिए ढेर सारा था किसी पत्रकार से नहीं मिलना किसी संघ में शामिल होना तो तब करूं जब मेरे पास जनहित को करने के लिए कुछ ना हो। दो वक्त की रोटी की व्यवस्था ना हो दिमाग के सारे चेंबर खोखले हो चुके हूं और सरकार की हुआ हुआ करने के साथ-साथ भीड़ इकट्ठी करके लोगों को ब्लैकमेल करके वसूली करने की इच्छा हो।
निवेदक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र इंदौर
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