सभी जिलों में कोषालय द्वारा शासकीय मुद्रांक की बिक्री की जाती है। वहीं पर प्रति सप्ताह ₹10000 का नगद चालान लेकर 10, 20, 50, 100 के स्टांप दिए जाते हैं। और उस पर मात्र 2% कमीशन मिलता है। बाकी सारे बड़े स्टांप के ऊपर e-stamping होने के कारण वह स्टांप अब कोषालय से नहीं बेचे जाते। परंतु कोषालय में बैठे अधिकारी जैसा कि पिछले 50 सालों का इतिहास रहा है। हर सरकारी बिलों के भुगतान में सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों के वेतन भुगतान बिलों में भी वसूली करते हैं। स्वभाविक सी बात है वसूली की आदत हर काम के बदले पूरी की जाती है। तो स्वाभाविक सी यह तथ्य भी है की स्टांप खरीदने वाले विक्रेताओं को वहां से स्टांप देने के नाम पर भी चूंकि उन्हें बहुत सारी खानापूर्तियां करनी पड़ती है। जिसमें किसको स्टांप बेचे गए। उसका नाम पता लेने के साथ उसके पते की सरकारी आधार कार्ड या वोटर आईडी कार्ड से पुष्टि की जाती है। और उसका नंबर डाला जाता है। अब देखने वाली बात यह है की मात्र 2% कमीशन मिलने पर आखिर स्टांप विक्रेता मजबूरी में सारी खानापूर्ति में उलझाया जाकर उससे उस काम को करने के लिए 2% से ज्यादा ही कमीशन कोषालय अधिकारी कर्मचारी खा जाते हैं। अन्यथा उन्हें स्टांप रजिस्टर की जांच करने के नाम पर हर दो-तीन साल में जो पुनर पंजीयन होता है उसके नाम पर भारी परेशान किया जाता है। चूंकि कोषालय अधिकारियों कर्मचारियों की वसूली और रिश्वतखोरी की पिछले कई वर्षों से इन सभी मामलों में कई शिकायतें और समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है। परंतु ये हरामखोर और भ्रष्ट सरकारी विभागों के वेतन बिलों से लेकर जिसमें उन्हें एक-दो प्रतिशत कमीशन चाहिए रहता है। अन्यथा वे इन बिलों को उसमें किसी न किसी प्रकार की त्रुटि निकालकर और अधूरा बता कर कमीशन मिलने तक लंबित में डाल देते हैं। उसी प्रकार से स्टांप वेंडरों के साथ में भी जबकि सोमवार और शुक्रवार को चालान भरे जाने के बाद में और उस चालान के संबंध में भी आप 10-10000 की तीन चार चालान सोमवार और शुक्रवार को जमा कर सकते हैं। के विपरीत इंदौर के कोषालय अधिकारी पस्तोर मुकाती और उमेश जैन जानबूझकर जो कमीशन नहीं देते हैं। यह तीनों हरामखोर उनके एक से ज्यादा चालान भी नहीं लेते और उनको पुनर पंजीयन नवीनीकरण और स्टांप बिक्री रजिस्टर की जांच में उलझा कर परेशान कर डालते हैं। यह कारोबार प्रदेश के हर कोषालय के हर स्टांप विक्रेता की नियमित परेशानियों का हिस्सा है। जो उनको 2% कमीशन दे देता है। उसके हर सप्ताह हर सोमवार और शुक्रवार चेक से भी 5 से 10 चालान भी स्वीकार कर लिए जाते हैं। जबकि स्टांप की बिक्री में सरकार की तरफ से केवल 2% कमीशन ही मिलता है। जो नहीं देता है। उसको सोमवार, शुक्रवार के जमा किये एक चालान के भी स्टांप दो सप्ताह बाद भी नहीं दिये जाते। जो पैसे दे देता है। उसको 3दिन बाद ही 3-5 चालान के सभी मूल्यों के स्टांप दे दिये जाते हैं।
अगर स्टांप विक्रेता यदि फिर रू10/- का 15 में, 50 का रू60/- में रू100/- का रू110/- में बेंचता है। तो भी ये उसकी अपने ही आदमियों से शिकायत करवा कर उसकी पात्रता और अनुज्ञप्ति समाप्त कर देते हैं। आखिर उसे हर दिन रू500/- 700/- की आय नहीं होगी तो खायेगा क्या, और काम करेगा ही क्यों?
दूसरी तरफ अन्य विभागों के भुगतान में भी यदि कमीशन नहीं मिलता है। तो यह कोषालय से सरवर ही बंद कर देते हैं। यही कारण है, कि कार्य विभागों में इसमें लोक निर्माण, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, जल संसाधन, ग्रामीण यांत्रिकी, महिला बाल विकास, कृषि, उद्यानिकी, स्वास्थ्य, वन, शिक्षा, आदिम जाति कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण, नर्मदा घाटी से लेकर सभी के वेतन बिलों वाणिज्य कर, आबकारी, खनिज, रेशम, कृषि, उद्यानिकी, स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य नागरिक आपूर्ति, खाद्य एवं औषधि, श्रम, परिवहन, गृह, न्यायालय आदि में भी पेंशन, चिकित्सा, यात्रा व्यय, आदि के अधिकारियों कर्मचारी के बिलों जो जो शासकीय कर्मचारी होते हैं के बिलों के भुगतान की वसूली चाहिए होती है।
आखिर क्यों कोषालयों के अधिकारियों व कर्मचारियों के स्थानांतरण हर तीन वर्षों में नहीं किये जाते। क्यों और कैसे 10-15 वर्षो तक एक ही शहर में कार्यालयों में जमे रहते हैं।
अब नई सरकार है मंत्रियों को चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों अधिकारियों को कोषालय से तत्काल हटाए।
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