क्या वि श्व स्वास्थ्य संगठन का उद़देष़़स्य पूरी दुनुिया मे, दवा परीक्षण
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण में हाल ही में डॉक्टर पल्लवी जैन गोविल को हटाया गया है जो प्रधान सचिव थी।
अब सुलेमान खान प्रधान सचिव स्वास्थ्य राजीव चंद्र दुबे सचिव श्रीमती अरुणा गुप्ता भी अपर सचिव हैं आयुष में एमके अग्रवाल चिकित्सा शिक्षा रेखा शुक्ला प्रमुख सचिव प्रतीक हजेला स्वास्थ्य सेवाएं जे विजय कुमार संचालक प्रशासन स्वास्थ्य सेवाएं अरुणा गुप्ता संचालक एडस, निशांत बरबड़े आयुक्त चिकित्सा शिक्षा के अतिरिक्त संचालक बजट संचालक एन आर एच एम, झलक चिकित्सा निगम आदि में भी सब जगह आईएएस अधिकारी बैठे हुए हैं।
स्वास्थ्य से संबंधित हर खरीदी में अकेले 32% कमीशन मुख्यालय में ये केवल ऊपर के आईएएस अधिकारी ही खा जाते हैं इसके उपरांत मंत्री मुख्यमंत्री से लेकर निचले स्तर पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी वाह अंतिम स्तर पर बिल का भुगतान जिलों तक होते होते यह कमीशन 65 से 70% तक हो जाता है अब आप अनुमान लगाइए किस स्तर की दवाइयां किस भाव में कितने प्रतिशत तक खरीदी जाती हैं।
दिल्ली अन्य औद्योगिक निर्माण स्थलों पर जैसी जगहों में जॉब कार्ड का प्रयोग होता है कतरन में से बची कांच की स्लाइड जो5-7 पैसे कीमत की पड़ती है एक रूपय 8 पैसे से सवा रू तक में खरीदी की जाती है वह भी कुल आपूर्ति किए गए माल का 25% से 50% तक होती है बाकी सब काम माल लेना दिखाकर पुराने स्टॉक में जोड़ कर दिखा दिया जाता है इसलिए कहीं पर भी कभी भी कोई भी सरकारी चिकित्सालय अपने आप स्टॉक रजिस्टर की कॉपी मांगने पर नहीं देता। उस 50 8% माल में से भी भंडार अधिकारी कर्मचारी अपनी इच्छा अनुसार वह माल भी बाजार में मोटे कमीशन भेज दिया करते हैं उसका भी सा नीचे के डॉक्टरों से लेकर सीएमओ तक बढ़ता है आर्य है प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अंतर्गत काम करने वाले स्वास्थ्य विभाग के जिला स्टोर तक हर जगह होता है। फिर सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हर कदम हर किसी के द्वारा किया जाता है। जिसकी जानकारी बरसों से आपको समाचार पत्रों के माध्यम से व अन्य माध्यम से 1-2% मिलती रहती है। इस विभाग में बैठे कोई जॉब सर्च बाबू से लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी तक ने इंदौर में कभी भी सूचना के अधिकार में आदेश निशुल्क हो जाने के बाद में भी कभी नहीं दी। जबकि अधिकांश स्वास्थ्य योजनाओं में निजी वालों को चिकित्सा प्रसूति आदि का खर्च निजी को भी दिया जाता है। वहां पर सीधा 50-50% का सौदा होता है। और वह भी हर जिले में साल भर में करोड़ों में हो जाता है जहां नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार की महामारी हर कदम वर्षों से फैली हो।
फिर डॉ आनंद राय ने सन 2008 में उसकी इच्छा अनुसार मोटी रकम जो लाखों में थी। डॉक्टरों द्वारा ना दिए जाने के कारण ही जो ड्रग ट्रायल कांड सामने आया था जिसमें अट्ठारह सौ की वयस्क व ९२८ की नवजात से लेकर मौत अकेले इंदौर में होना व किया जाना बताया गया था। उस कांड की गूंज ना केवल देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची थी। वरन पूरे विश्व में डब्ल्यूएचओ द्वारा करवाये जा रहे भारत के अंदर हर जिले के निजी व सरकारी चिकित्सालय में ड्रग ट्रायल कांड की गूँज पूरी दुनिया में हुई थी। आखिर अधिकांश m.y. के डॉक्टर ड्रग ट्रायल कांड में विदेशों की यात्रा करके आये थे। उन्हें अनेकों बड़े-बड़े उपहार दिए जाते थे। सीधा खाते में पैसा आता था। सब कुछ जांच होने के बाद किसी भी डॉक्टर पर आज तक 12 साल बाद भी क्या कार्रवाई हुई न्यायालयों ने क्या कार्रवाई की किसी को कुछ भी नहीं मालूम पड़ा।
बेशक अनेकों मित्र और पाठकों को कहने पर मैंने इसकी खोजबीन में काफी लंबा समय लगाया 6 अप्रैल या उसके आसपास 2004 को जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तुम्हें स्वास्थ्य मंत्री अंबु मणिराम दास ने पूरे देश में डब्ल्यूएचओ जो विश्व की और खासतौर से यूरोपियन दवा और उत्पादक कंपनियों का विश्व स्तर पर व्यवसायिक व शासकीय स्तर पर अपने संबंधों के साम-दाम-दंड-भेद से खरीद कर अपनी धन देने वाली कंपनियों के व्यवसाय संवर्धन की कार्य करने वाली एजेंसी है चेक बूटा धन डकार कर पूरे देश में बिना किसी आदेश जांच या आज्ञा के कहीं पर भी किसी पर भी बिना किसी पूछताछ और बीमारों को बताएं औषधियों इंजेक्शन टीके उपकरणों आदि के परीक्षण की गोपनीय रूप से छूट दे दी थी।
और तब से इस देश में हर वर्ष निजी व शासकीय चिकित्सकों से निकलने वाली या होने वाली मौतों में 20 से 40% तक मौतें इसी प्रकार के कांड में होती हैं।
सन 2008 में इतना हल्ला मचने के बाद में भी कभी भी किसी भी सरकार ने राज्यों की व केंद्र की भारत में मरीजों को बिना बताए बिना आज्ञा लिए इस दवा परीक्षण की छूट दे रखी है।
आखिर क्यों और कैसे सरकार करोना से तो मरना बता रही है।
परंतु इस दुनिया की औषधि कंपनियों की दवा परीक्षण की भारत की मंडी में कितने लोग गोपनीय तरीके से किए जा रहे। दवा परीक्षण में मर जाते हैं।
यह जांच आज तक क्यों नहीं की गई और क्यों नहीं सार्वजनिक की जाती।
इसके ऊपर मेरे पत्रकार बंधु खोजबीन कर शासन के सामने रख और उनसे पूछो कि आखिर इस देश की जनता क्या चूहे खरगोश सुअर बंदर आदि से भी गई बीती हो गई।
जिन को बिना बताए उन पर यह दवा कंपनियां अपना दवा परीक्षण कर डॉक्टर को मोटा कमीशन बांटती रहती हैं। और मरने वाली आम जनता होती है।
निवेदक
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र इंदौर
www.samaymaya.com
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