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एलोपैथिक मेडिकल सिस्टम जो है।
पूरा ट्रायल एंड इरर अर्थात कोशिश करो गलतियां हो जाए बदल कर दवाई दो, जिसमें मोटी कमाई व कमीशनखोरी हो और ठीक करने की कोशिश करो प्रणाली पर चलता है।
यह गणित की अभियांत्रिकी का हिस्सा नहीं वरन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बनाई हुई दवाओं मशीनों चिकित्सा उपकरणों की बिक्री और मोटी कमाई का हिस्सा है।
और इसलिए यह पूरा व्यवसाय भय फैलाओ और कमाई करो यह बात अधिकांश युवाओं को पसंद नहीं आएगी।
पर परिपक्व लोग जो बीमारियों का शिकार होकर डॉक्टरों की शरण में जिंदगी गुजार रहे हैं। बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
दूसरी ओर चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी जीवन से ही बीमारियों के बारे में पढ़ पढ़ कर मानसिक बीमार होने के साथ एलोपैथिक घातक रसायनों युक्त औषधियों के खाने के आदतन शिकार होते हैं।
वे बिना किसी दूसरे डाक्टर को बताएं। जो दवाई उन्हें समझ आती व अच्छी लगती है।
वह विद्यार्थी जीवन से ही खाना शुरु कर देते हैं।
इसलिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती चली जाती है।
और वे उस पर बिना किसी दूसरे डॉक्टर को बताएं क्योंकि दूसरे को अपनी बीमारी बताने से स्वंय की पेशे पर पकड़ कमजोर सिद्ध कर बदनामी का कारण बनेगी। अपने मन से ही नियंत्रण पाने के लिए ट्रायल एंड एरर का प्रयोग अपने पर ही करते रहते हैं।
यदि आपकी पहुंच डॉक्टरों तक हो और उनकी निजी जिंदगी में झांकना संभव हो तो देखें डॉक्टर स्वयं ही ट्रायल एंड एरर कि स्वयं ही बड़ी प्रयोगशाला होते हैं।
अब कल डॉक्टर पंजवानी का जो निधन हुआ वह पुरानी हृदय की बीमारी से ग्रसित था।
स्वाभाविक सी बात है। आज जिस डॉक्टर का निधन हुआ। उसकी मेडिकल हिस्ट्री कोई भी उसका साथी डॉक्टर नहीं बता सकता।
जबकि वह स्वयं अपने ऊपर कितनी दवाओं का इसके बीमारी के भय को दूर करने के लिए प्रयोग कर रहा था। और उसके चक्कर में आज मृत्यु का शिकार हो गया प्रशासन को वाह सरकारी स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों को चिल्लाने का पर्याप्त आधार बन गया।
यह मीडिया के हुआ हुआ करने वाले पत्रकार इस पर अध्ययन करें और सच्चाई ज्ञात करें।
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