पूरे देश की तालाबंदी कर अपने खास पूंजीपतियों के शॉपिंग माल की बिक्री बढ़ानेे यही तो मोदी को, भाजपा सरकारों को चाहिए था।
जो काम खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 नहीं कर पाया।
वही काम कोरोना के बहाने अब मोदी सरकार ने कर दिया।
ताकि आम 100 करोड़ आदमी भी इन पूंजी पतियों के शॉपिंग माल की बिक्री करवाएं। जो मुनाफा पिछले 15-20 सालों में इन शॉपिंग वालों को नहीं हो पाया था।
वहीं 21 दिनों में जनता को लूट कर, कर लेंगे, यह यह सब शॉपिंग माल वाली देसी विदेशी पूंजीपति बहुराष्ट्रीय कंपनियां वॉलमार्ट इजी डे आदि जिन्होंने सन 2002 में लगभग 5 लाख करोड रुपए से ज्यादा का इस कानून बनवाने में निवेश किया था। अटल की सरकार के समय ही रिलायंस ने हीं अपनी रिलायंस फ्रेश के लगभग साढे 500 मॉल्स हजारों करोड़ की लागत से पूरे देश में खोले थे।
सरकारों में प्रशासन में अगर इमानदारी है। तो आखिर गली मोहल्ले के किराना शॉप्स आदि को समय पर माल की आपूर्ति करवा कर छोटे गरीब लोगों को जिन के पास बैंकों में धन नहीं, कार्ड नहीं, ऑनलाइन भुगतान के तरीके मालूम नहीं, वह भी अपनी मुश्किलें से चल रही रोजी-रोटी और जीवन यापन करने के लिये छोटी आवश्यक सामग्री खरीद सकें।
इस कोरोना की आड़ में जो दो करोड़ से ज्यादा फुटकर किराना दुकानों सब्जी भाजी बेचने वालों छोटे हाॅकर आदि को खत्म करने का षड्यंत्र 2006 से कानून बना कर चलाया गया था।
उस वक्त मनमोहन सरकार ने इस कानून को बनवाने के लिए एक सांसद को 500 करोड़ रुपए दिए थे। जिसमें अकेले अमेरिकी वालमार्ट ने 37500करोड़ डालर दिये थे। इसीलिए खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 को हटाकर इसमें मिलावटीयों व नकली माल बनाने बेंचने वालों को 2से 7 वर्ष की सजा थी़। खत्म करवा दिया गया। बदले में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के नाम पर जिस पर सभी सांसदों ने धन के बदले आंख मीच कर अंगूठा लगा दिया था और उसका हल्ला भी किसी भी अखबार मीडिया आदि ने 2006-7 से नहीं उठाया था। मैं अकेला समय माया समाचार पत्र प्रकाशित करने के साथ www.samaymaya.com की साइट पर इसके खिलाफ लिखता रहा। देश के व्यापारीक संगठनों को िलख कर जाग्रत कर आवाज उठा रोकता रहा। इस कारण सरकार इसको 2011 तक नहीं लगा पाई।
2011में अन्ना का आंदोलन चल रहा था। उसने 23 जुलाई 2011 को घोषणा की कि मेरा आंदोलन 15 अगस्त के बाद 16 अगस्त से करूंगा। सरकार ने जब सारा मीडिया अन्ना अन्ना भौंक रहा था। सरकार ने 5 अगस्त 2011 से उस कानून को पूरे देश में लागू करवा दिया। उस कानून को लागू होते ही पूरे देश में जब भारी हल्ला मचा और करोड़ों के बेरोजगार होने की खबर फैली तो सरकार ने उन कानूनों में छूट देकर उसको सख्ती से पालन न करवाने की सलाह दे दी। गाहे-बगाहे बड़े शहरों के नगर निगम बड़े शॉपिंग मॉल की पूंजी पतियों के इशारे पर छोटी दुकानों पर पालीथीन के बहाने, सफाई के बहाने दुकानों को समेटना, ठेले तोड़ना, उठाना, दुकानों निगम द्वारा बात2 पर मोटा चालान करना आदि चलाया गया था। जो फर 2020 तक सफल नहीं हो पा रहा था।
जो पूंजीपतियों को बैचेन कर रहा था। उनका हजारों करोड़ इन शापिंग माल्स में फंसा हुआ था। अब इश कोरोना के बहाने सारी छोटी मध्यम कि राना दुकानों को खत्म कर इन शापिंग माल्स में पहुंचा कर मोटी लूट और कमाई करना।
सरकारें इन पूंजीपतियों से सौदेबाजी कर कर अब यदि निशुल्क सामग्री भी पहुंचाती हैं। तो भी बीच में मोटा कमीशन हड़पेंगे। जिसका भुगतान भी जनता को ही करना होगा।
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