आपने यदि पत्रकार होने का चोला ओढ़ ही रखा है।
तो सदैव एक बात याद रखें आप की सोच और लेखन में हमारे देश और दुनिया के उस अंतिम बिंदु मेहनतकश ईमानदार मजदूर कारीगर हाकर सब्जी बेचने वाला गरीब किसान मजदूर जिसे आप नहीं जानते हैं। या जिससे आपका सीधा संबंध नहीं भी है। तो भी उसके वर्तमान और भविष्य के कल्याण के लिए आप और हम ही जिम्मेदार है।
उसी की मेहनत पर आपकी लेखनी सार्थक होती है।
उसी की मेहनत से आपका पेट भरता है।उसी की मेहनत से सड़के बनती है। बहुमंजिला इमारतें खड़ी होती हैं।
फैक्ट्रियां चलती हैं। खेतों में अनाज पैदा होता है।
उसकी मेहनत पर सत्तायें चलती हैं। उसी की मेहनत पर बाजार, सरकारें, देश और दुनिया चलती है।
परंतु उसके बदले में उसको केवल उसकी मेहनत का जीवन यापन हेतु मुश्किल से जीने का अधिकार मिलता है।
बड़ा ही आसान है की करोना फैल रहा है। तो सब्जी, कृषि उपज मंडीयां बंद कर दो। फैक्ट्रियां बंद कर दो। वह दैनिक मजदूरी करके जो धन प्राप्त करता है। उससे उसका उसके बच्चों का पेट पालता है। जो आपके देश और दुनिया में मेहनत मजदूरी करके मध्यमवर्गीय उच्च मध्यमवर्गीय और अमीरों को पालते हैं।
अगर सब बंद कर दिया तो सबसे पहले आप और हम भी भूखे मरेंगे।
फिर जिस चीन में और चीन से करोना फैला था या है।
उसने अपनी 90% फैक्ट्रियां और बाजार खोल के काम शुरू किए हुए भी उसे 10 दिन से ज्यादा गुजर चुके हैं।
आपको दुनिया की बहुराष्ट्रीय कंपनियों उनकी जालसाजियों, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों की आपसी आर्थिक सामरिक प्रतिद्वंद्विता को भी उनके इतिहास वर्तमान और भविष्य को भी समझना होगा।
चीन और अमेरिका की आर्थिक सामरिक श्रेष्ठता और एकाधिकार की प्रतिद्वंद्विता पिछले कई सालों से चल रही है।
उस पर भी दृष्टिपात करना चाहिए।
यह लिख देना काफी नहीं कि फैक्ट्रियां बंद कर दो। आखिर उन 30 करोड दैनिक वेतन भोगी मजदूरों और उनके ऊपर निर्भर 50 करोड़ बच्चों महिलाओं की भूख, रोजी-रोटी की व्यवस्था कौन करेगा?
क्या सरकार करने को तैयार है?
वर्तमान की मोदी सरकार तो रोजगार देने की तो दूर बेरोजगारी बढ़ाने पर ही आमदा है।
गंभीरता से सोचिए और सार्थक लेखन करिए।
अगर आपको बुरा लग रहा है। मेरी बात कड़वी लग रही है तो बेशक आलोचना करने के लिए स्वतंत्र है।
पर हमको जिम्मेदारी स्वीकारना तो होगी।
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