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बेशक बैंकों के एनपीए में सबसे बड़ा हाथ वहां के अधिकारियों और प्रबंधकों का होता है ।
वे जब किसी को एक रुपए का लोन देते हैं तो बदले में डेढ़ से रु 2 तक की संपत्ति गिरवी करते हैं।
जब बैंक द्वारा दिया गया हर कर्जा संपत्तियों के बंधक व रहन से सुरक्षित किया जाता है।
तो आखिर बैंकों में एनपीए क्यों हो जाता है? उसके पीछे सबसे धूर्त मक्कार चार्टर्ड अकाउंटेंट बनाम करप्ट अकाउंटेंट जो उन संपंत्तियों का मूल्यांकन 150 से 500% तक ज्यादा कर संपत्तियों के आंकलित मूल्य का बैंक आसानी से 60 से 80% तक कर्ज स्वीकृत कर देते हैं। जो कि बाद में गैर लाभप्रद आस्तियों में परिवर्तित हो जाता है। यही एनपीए कहलाता है। अब कहानी शुरू होती है वसूली की, जिस अधिकारी ने उन्हें कर्ज स्वीकृत किया होता है संपत्तियों के मूल्यांकन के बाद वह 2 से 5% जो ज्यादा फर्जीवाड़े में 20% तक कमीशनखोरी में हजम कर लिया जाता है। बैंको के कर्ज बांटने वाले अधिकांश अधिकारी सुरासुंदरी शौकीन और जुआरी होते हैं। सभी बड़े पूंजीपति छोटे से लेकर बिरला अंबानी तक ऐसे अधिकारियों पर निगाह रख कर सुरा सुंदरी की सेवाएं उपलब्ध करवाकर अपनी संपत्तियों का कई गुना मूल्यांकन करवा कर उनसे मोटे हजारों करोड़ के कर्ज ले लेते हैं। जो बाद में एमपी में बदल जाता है कहानी अब शुरू होती है आंख जिन अधिकारियों ने ऐसे कर्जे बांटे थे उन पर आज तक वित्त मंत्रालय बैंकिंग इंडस्ट्री और रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने जनता का पैसा लुटवाकर स्वयं मोटा कमीशन खाकर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। जबकि उनके ऊपर सीबीआई की जांच की जानी चाहिए थी उनकी संपत्तियां जब्त की जानी चाहिए थी।उन पर न्यायालय में प्रकरण चलाकर उन्हें सजाए दिलवाई जानी चाहिए थी। परंतु पूरे देश की सारी बैंकिंग में चाहे वह सहकारी हो निजी या सरकारी हों। कितने अधिकारियों पर ऐसे मुकदमे लादे गए कितनों को अंदर किया गया कितनों की संपत्ति जप्त की गई और जिनको ऋण दिए गए थे। उनके ऋणों के बदले में छोटे से लेकर सभी बड़े पूंजीपतियों जिन्होंने हजारों करोड़ ऋण लेकर संपत्तियों को गिरवी रखी गई।
यह समानुपातिक बंधक बनाई गई कितने की संपत्तियों को नीलाम किया गया।
बेशक चुनाव से पहले मोदी ने लगभग सभी बड़े पूंजीपतियों से उनको मोटा फायदा पहुंचाने के वादे पर 5 लाख करोड़ से ज्यादा का चंदा किया था। और धुआंधार जुलाई 2013 से लेकर मई 2014 तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम को खरीदने और अपने झूठे वादों के 50 और जनता को भ्रमित करने में भी लाखों करोड़ लुटाया गया था।
देश का सारा मीडिया छोटे बड़े समाचार पत्रों से लेकर सारे न्यूज़ चैनल मोदी का राग मुफ्त में नहीं अलाप रहे थे।उन्हें भी हजारों करोड़ लुटाया गया था।
साथ में चुनाव जीतने के लिए पूरे चुनाव आयोग से लेकर सारे देश के भारतीय प्रताड़ना सेवा के अधिकारी भी खरीदे गए थे। उन शूकरों ने इवीएम की जालसाजी से दोनों बार चुनाव जितवा दिए। स्वाभाविक था जिनसे से हजारों करोड चंदा लिया गया था। उन्होंने बैंकों का ऋण चुकाने की अपेक्षा क्योंकि मोदी उनका बिका हुआ था। आसानी से वे दिवालिया कानून के अंतर्गत अपने आप को दिवालिया घोषित कर उसमें बचने के व्यवस्था कर दी गई।
जबकि यदि अनिल अंबानी 45000 करोड़ के कर्जे में है। तो उसकी दुसरे उद्योगों की देश विदेश की लाखों करोड़ों की संपत्तियां नीलाम क्यों नहीं की जाती।
यही हाल है मुकेश अंबानी, टाटा, बिरला, भारती मित्तल, जेपी एसोसिएट्स व अन्य सभी जिन्होंने सैकड़ों करोड से लेकर लाखों-करोड़ों के कर्ज लिए हैं। अंबानी अडानी टाटा बिरला जैसे सैकड़ों पूंजीपति जो अधिकांश गुजराती है यहां से बैंकों से कर्ज लेकर विदेशों में निवेश कर चुके हैं।
सर्वाधिक गुजराती जिनका देश की बैंकों का कर्जा चुकाने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है। क्योंकि जब तक उनका आका मोदी सत्ता में है। उनका कोई बाल नहीं बिगड़ेगा।
उनसे जुड़ी हर संपत्ति हर कंपनी और देश-विदेश में फैली हुई सारी संपत्तियां उद्योगों को उन देशों की सरकार को लिखकर जब्त करवा कर अगर कर्ज़ों की पाई पाई की वसूली की जाए। तो कोई भी बैंक घाटे में नहीं होगा। परंतु 2,5,10 लाख, करोड़ दो 5 करोड़ 10 करोड़ तक की संपत्तियां पर लिए गए ऋणों की संपत्तियां को तत्काल नीलाम कर दी जाती है।
सारी बैंकों के डूबने का मूल कारण मोदी को दिए गए हजारों करोड़ के चुनावी चंदा है।
जिसमें पैसा जनता का डूब रहा है।
इसे कौन समझेगा? कौन लिखेगा? सच्चाई से दूर पूंजीपतियों को बचाने के लिए मोदी सारे षड्यंत्र रच कर सभी सरकारी संपत्तियों, उद्योगों, बैंकों को, रेलवे, सड़कों, तेल कंपनियों जीवन बीमा निगम आदि सबको बेचकर पैसा इकट्ठा करने में लगा हुआ है।
बेशक हिंदुत्व के धीमे मीठे नशे को पिलाकर देश के हिंदुओं के दिमाग को स्तंभित कर दिया गया है। बदले में अर्थव्यवस्था के साथ में गरीब निम्न मध्यम से लेकर उच्च मध्यमवर्गीय तक सब बर्बाद और बेरोजगारी झेलने पर मजबूर हैं। देश की अर्थव्यवस्था को पूरा चौपट कर दिया गया है।
पर मोदी के अंध भक्त परजीवी, मंद बुद्धि, घोर स्वार्थी, मक्कार हिंदू मोदी का राग अलापने से बाज नहीं आ रहे हैं।
जबकि 90% छोटे मोटे से लेकर मध्यम वर्गीय व्यवसायी, धंधे पानी वाले निजी क्षेत्रों में नौकरी करने वाले कैसे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। उनसे पूछिये। जिनकी जिंदगी भर की जमा पूंजी बैंको में डूब रही है।धंधे चौपट हो चुके या आत्यधिक मंदी की चपेट में हैं। 10 करोड़ से ज्यादा बेरोजगार लोगों से पूछिए अति ज्ञानी छिछोर ज्ञानी पाखंडी जिन्हें अर्थशास्त्र की एबीसीडी नहीं आती। वे ही अंधभक्त ज्यादा मोदी का राग अलाप रहे हैं।
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