गैर भाजपाई राज्यों में नागर‍िकता कानून का नहीं, वोट बैंक के कमजोर होने का डर
कांग्रेसी राज्यों में नागरिकता कानून के विरोध में जो कांग्रेसी खुजली कि विरोध प्रदर्शन की बीमारी फैल रही है उसे वर्तमान पीढ़ी के 90% हिंदुओं को समझ में आ गया होगा की कांग्रेसी कितनी बड़ी राष्ट्रवादी पार्टी है यथार्थ में कांग्रेस आजादी की लड़ाई में भी कोई बहुत भारी सहयोग नहीं किया अंग्रेजों ने भारत कांग्रेसी आंदोलन के कारण नहीं छोड़ा। घोर मक्कार अय्याश नेहरू गांधी जिन्ना तीनों ही इंग्लैंड में पढ़े हुए अंग्रेजी सरकार के भारत में एजेंट थे।जो अंग्रेजों को भारत में फैल रहे उनके विरुद्ध आक्रोशों को दबाने छोटे-मोटे अहिंसक आंदोलन करके जनता के हिंसात्मक आंदोलन और मार काट से उनकी रक्षा कर रहे थे। जबकि अंग्रेज भारतीयों को मौका मिलते ही जहां-तहां भूनना। मारकाट करना कानून की आड़ पर दमन चक्र चला लोगों को फांसी पर लटकाना आदि घटनाओं को खुले में नियमित अंजाम दे रहे थे। अंग्रेजों ने भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में दुनिया के 65 से ज्यादा देशों में फैले हुए साम्राज्य में हो रही दिवालिया इंग्लैंड को आर्थिक हानि से बचने के लिए अनेकों देशों को छोड़ा उसमें एक भारत भी था। दूसरी तरफ बॉम्बे नेवी द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ इसी शर्त पर निभाया था कि वह युद्ध खत्म होते ही भारत को छोड़ देंगे। पर जब युद्ध के बाद उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। तब बांबे नेवी के भारतीय जवानों ने ब्रिटेन की जल सेना के अनेकों युद्ध जहाजों को डुबोने के साथ तीन सौ से ज्यादा अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी और खुले में उन्हें ललकारना शुरू कर दिया। इससे डर कर अंग्रेजों ने भारत को छोड़ना हीं उचित समझा इसलिए उन्होंने इन तीनों अपने चाटुकार भारतीय एजेंटों को मोहरा बनाकर जाने से पहले पट्टे की आजादी के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिए। जबकि सच मायने में कांग्रेश पार्टी का नहीं बल्कि सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद सेना जिन्होंने अंग्रेजों की जापान और जर्मनी के साथ मिलकर अंग्रेजों को देश की सीमाओं के साथ अनेकों देशों में भी धूल चटा दी थी। मुंबई नेवी आदि के बगावती भारतीय सैनिकों के साथ अनेकों अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का भारी योगदान रहा। परंतु कांग्रेस ने उन सबको अंग्रेजों के भारत छोड़ते ही उन क्रांतिकारीयों के इतिहास को ही नष्ट कर दिया। उन्हें कभी ऊपर नहीं आने दिया। यहां तक कि सुभाष चंद्र बोस 1984 तक देहरादून में जीवित रहे पर उन्हें गुमनामी बाबा की जिंदगी जीना पड़ी। जिनकी मृत्यु पर तीनों सेनाओं ने उन्हें सलामी दी। इस इतिहास को भी कांग्रेश के साथ भाजपा ने मिलकर विकिपीडिया से साफ करवा दिया।वह इतिहास मेरे पास सन् 2007 से संचित था पर कंप्यूटर की हार्ड डिस्क बैठ जाने के कारण समाप्त हो गया। ताकि सत्ता कांग्रेस के कब्जे और मुट्ठी में बनी रहे। अभी भी नागरिकता संशोधन बिल को लेकर यही मानसिकता अपनाते हुए जानबूझकर देश के अंदर मुसलमानों को भड़का कर दंगे करवाने की फिराक में है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए आम हिंदुओं को अपनी भविष्य की स्थिति और औकात समझ लेना और तत्काल एकजुट हो जाना चाहिये।
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