शीत ऋतु में आघातों से बचने के लिए हिंदू धर्म के शास्त्रों परंपराओं की शि क्षा
हमारी सनातन हिंदू धर्म के शास्त्रों परंपराओं और दैनिक दिनचर्या में ऐसे शीत ऋतु में आघातों से बचने के लिए ही नींद खुलने के साथ ही एकदम धरती पर पैर न रखें। जागते साथ ही अपनी ही हथेलियों को खोलकर व जोड़कर हाथों के दर्शन करने और मंत्र का जाप करने की व्यवस्था की गई है। जिसमें दोनों हाथों को खोलकर जोड़कर दर्शन करते समय अंतर्मन में प्रार्थना करनी चाहिए
कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये च सरस्वती, कर मूले बसे कृष्ण॔।
साथ ही नथुनों पर हाथ रखकर देखना चाहिए आपका कौन सा स्वर चंद्र स्वर या सूर्य स्वर चल रहा है़। चंद्र स्वर अर्थात बाई नाक से सांस लेना और छोड़ना और सूर्य स्वर अर्थात दाई नाक से सांस लेना और छोड़ना। जो भी स्वर चल रहा हो वहीं हाथ सर्वप्रथम धरती को स्पर्श करना है। धरती को स्पर्श करने से पूर्व अपने जिस नथुने से सांस चल रही है उसी हाथ से धरती को स्पर्श कर प्रणाम करना चाहिए। प्रार्थना करनी चाहिए हे धरती मां मैं आपके आंगन में खेलने वाला मानव आपको प्रणाम करता हूं आपकी ही गोदी में खेलकर और खा पीकर मैंने यह जीवन पाया है। यह आपको समर्पित कर रहा हूं। मुझे निरोगी स्वास्थ्य और आपके आंगन में फलने फूलने वाली सभी प्राणियों, वनस्पतियों, जन, जलवायु आदि की सुरक्षा स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए बनाया गया है। आप मेरा सदुपयोग करें जब तक मैं आपके आंगन में खेल रहा हूं। स्वाभाविक सी बात है।
इस प्रार्थना के उपरांत ही वही पैर सबसे पहले धरती पर रखें जो स्वर अर्थात सूर्य स्वर पर दांया पैर और चंद्र स्वर पर बांया पैर धरती को स्पर्श करें।
इस कार्य और क्रिया को संपन्न करने से इतनी देर में आपका रक्त प्रभाव पूरे शरीर में सामान्य रूप से संचालित होने लगेगा और आप अकाल आघात पूर्ण मृत्यु से बच सकेंगे।
इस संबंध में कुछ डाक्टरों की सलाहृ प्राप्त हुई जो नीचे दी हैः--
इस भीषण ठंड में जिनकी आयु 45 वर्ष से अधिक है, उन्हें रात में 10 बजे सोने के बाद से जब भी बिस्तर से उठे, तब आप एकदम से ना उठे। क्योँकि ठंड के कारण शरीर का रक्त गाढ़ा हो जाता है तो वह धीरे धीरे कार्य करने के कारण पूरी तरह ह्रदय में नहीं पहुँच पाता और शरीर छूट जाता है। इसी कारण से सर्दी के महीनों में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों की ह्रदयगति रुकने से दुर्घटनाए अत्यधिक होती पाई गई हैं, इसलिए हमें अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
जिन्हें सुबह या रात में सोते समय पेशाब करने जाना पड़ता हैं उनके लिए विशेष सूचना!!
हर एक व्यक्ति को इसी साढ़े तीन मिनिट में सावधानी बरतनी चाहिए।
यह इतना महत्व पूर्ण क्यों है?
यही साढ़े तीन मिनिट अकस्माक होने वाली मौतों की संख्या कम कर सकते हैं।
जब जब ऐसी घटना हुई हैं, परिणाम स्वरूप तंदुरुस्त व्यक्ति भी रात में ही मृत पाया गया हैं।
ऐसे लोगों के बारे में हम कहते हैं, कि कल ही हमने इनसे बात की थी। ऐसा अचानक क्या हुआ? यह कैसे मर गया?
इसका मुख्य कारण यह है कि रात मे जब भी हम मूत्र विसर्जन के लिए जाते हैं, तब अचनाक या ताबड़तोब उठते हैं, परिणाम स्वरूप मस्तिष्क तक रक्त नही पहुंचता है।
यह साढ़े तीन मिनिट बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
मध्य रात्रि जब हम पेशाब करने उठते है तो हमारा ईसीजी का पैटर्न बदल सकता है। इसका कारण यह है, कि अचानक खड़े होने पर मस्तिष्क को रक्त नहीं पहुच पाता और हमारे ह्रदय की क्रिया बंद हो जाती है।
साढ़े तीन मिनिट का प्रयास एक उत्तम उपाय है।
1. नींद से उठते समय आधा मिनिट गद्दे पर लेटे हुए रहिए।
2. अगले आधा मिनिट गद्दे पर बैठिये।
3. अगले अढाई मिनिट पैर को गद्दे के नीचे झूलते छोड़िये।
साढ़े तीन मिनिट के बाद आपका मस्तिष्क बिना खून का नहीं रहेगा और ह्रदय की क्रिया भी बंद नहीं होगी! इससे अचानक होने वाली मौतें भी कम होंगी।
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