भारत के न्यायालय न्याय के मंदिर नहीं जुए के अड्डे हैं।रफाल के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय में सिद्ध किया।
न्यायालय न्याय के मंदिर नहीं जुए के अड्डे हैं,जो जितना बड़ा दांव खेलेगा उसे उतना न्याय मिलेगा। यह मैं नहीं कह रहा, भाई यह तो 25 जनवरी 2002 को हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन ने कहा था। बेशक मुझे जानने वालों ने यह आरोप भी मुझ पर ही लगाया था। कि तुम्हारी लगातार 1999 से सन 2001 तक की जाती रही न्यायालयों के बारे में शिकायतों के कारण ही राष्ट्रपति ने हीं यह बात अपनी आत्मा की आवाज पर 25 जनवरी 2002 को, राष्ट्रपति ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कही थी। अब देखिए ना। जब राष्ट्रपति मुख्यमंत्री और राज्यपाल की अनुशंसा पर प्रदेश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियां की जाती हैं। जो बाद में पसंद आने और सत्ताधीशों की मर्जी के हिसाब से नाचने पर उनको पदोन्नति के बहाने प्रधानमंत्री की और राष्ट्रपति से अनुशंसा करने पर सर्वोच्च न्यायालय में भी पदस्थ कर दिया जाता है। इसलिए सत्ताधीश जिसमें प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से लेकर सभी सत्ता पक्ष के विधायक सांसद मंत्री के साथ सभी भारतीय प्रताड़ना सेवा के अधिकारी और पूंजीपति, सभी अपराधों, कदाचारों, जालसाजियों, लूट, डकैती, भ्रष्टाचार आदि के मुकदमों में जिला व सत्र न्यायालयोंं सेे सजा मिलने पर अपनी याचिका उच्च व सर्वोच्च न्यायालय में कर पहले तो मुकदमों को वर्षों तक लटकायेे रखते हैं। और बाद में मोटा धन खर्च कर आसानी से जीतकर बरी हो जाते हैं। जहां सारा खेल उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में और राजनीतिक आपराधिक प्रवृत्ति के नेता मंत्री मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के माध्यम से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। वहां उन विचारों की क्या औकात बखत है। कि वो अपने राजनीतिक आका प्रधानमंत्री की इच्छा के विपरीत जाएंगे और उनके विपरीत उनके विरुद्ध कोई झूठे और जालसाजी भरे पाखंड में भी सच्चाई से निर्णय देंगे। वैसा ही रफाल में हुआ 10-20 करोड़ का रफाल का कबाड़ा $1650 करोड़ में खरीदा गया और उसके बाद में भी उन बेचारे न्यायाधीशों को न्याय का गला घोट कर प्रधानमंत्री को क्लीन चिट देना पड़ी। जबकि उससे ज्यादा अग्रिम श्रेणी का एफ-16 के 18 विमान 860 करोड डॉलर में अमेरिका ने उधारी में पाकिस्तान को दिए कितना लूटोगे। देश को बर्बाद करोगे पूंजी पतियों के इशारे पर नोटबंदी जीएसटी रफाल रिजर्व बैंक खाली 4 गुना कीमत का पेट्रोल डीजल गैस बेचने के बाद में भी खजाने खाली बैंकों से जनता का जमा धन 4.50 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा न्यूनतम बैलेंस ऑपरेशन नहीं के नाम पर लूट लिया गया। किसानों की खेती की जमीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंपी जाने लगी। खजाना खाली है देश के महत्वपूर्ण 25 से ज्यादा हवाई अड्डे गिरवी कर दिए गए या बेंच दिए गए। अब जब युद्ध होगा और वह गिरवी पड़े हवाई अड्डों पर यदि सरकारी विमान मिलिट्री के फाइटर प्लेन नहीं उतरने दिए गए या शत्रुओं के विमानों को उन हवाई अड्डों पर उतारा जाता रहा। या हवाई अड्डों की जानकारी शत्रु देशों को उन पूंजीपतियों ने मोटा धन लेकर बैंची। तब क्या होगा? रेलवे बेंच दो। रेलवे स्टेशन बेंच दो। पटरिया बेंच दो। तेल कंपनियां बैंच दो। कौन सुनेगा सर्वोच्च न्यायालय में सब मोदी के बैठाए पैदल हैं। किसके पास जाओगे? अब इस देश में न्याय की गुहार लेकर। अपने बाप की जागीर समझते हैं। देश और देश की संपत्तियां सरकारी कंपनियां सरकारी बैंक बीमा कंपनियां रेलवे बी एस एन एल जो सन 2015 तक देश की लाभ देने वाली कंपनियां थी। ओएनजीसी, बीपीसीएल, एचपीसीएल, आईओसीएल आदि अनेकों कंपनियां सब जाने से पहले अपने आकाओं अंबानी, अडानी, टाटा, बिरला, व अन्य देशी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले ऐतिहासिक रेलवे का माल चोरी कर कबाड़ी को बेचने वाला कबाड़ के भाव बेच कर मोटा कमीशन हजम कर जाएंगे। भेड़िया झुंड पार्टी के वो गुजराती राक्षस मोदी और अमित शाह अपने मोटे कमीशन को लेकर विदेशों में स्थानांतरित करने वाले देश में 6लाख करोड का कर्ज़ मोटे ब्याज पर लिया गया। वही हाल विदेशों से भी लाखों का डॉलर का कर्ज़ ले लिया गया। आखिर इतना पैसा कहां जा रहा है। जबकि फकीर लंगोटी लगाकर अपनी पूंछ उठाकर विदेशों में लोट लगा रहा है। चारों तरफ बेरोजगारी का आलम है। एक संस्था बची है सर्वोच्च न्यायालय। उसे भी कठपुतली बना दिया। वैसे भी भारत की न्याय व्यवस्था पूंजीपतियों और सत्ता धीशों की की गुलाम है।
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