|
जाहिल मोदी की नोटबंदी और जीएसटी जो उसने अपने पूंजीपति आकाओं के लिए लगाई थी।
बेशक सभी उसके पूंजीपति आका पिछले दो-तीन सालों में सैकड़ों गुना कमाई करके अरबपति से खरबपति हो चुके हैं।
बदले में पूरे भारत की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। नोटबंदी में जनता को भ्रमित करने के लिए जो कारण बताए गए थे।
वह सभी निरर्थक और तबाही साबित हुए।
ना ही आतंकवादियों को धन की कोई कमी आई और ना ही कोई काला धन बाहर आया बल्कि काला काला धन जैसा कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा था 1000 का नोट खत्म करके 2000 का नोट चलाने से ज्यादा बढ़ेगा और बढ़ गया।
दूसरी तरफ नगदी की मार और जीएसटी ने जिसे बिना पूर्ण तरीके से लागू करने से पूर्व अध्ययन निष्कर्ष और उसके बाद के परिणामों का लगाएं पूंजीपतियों के इशारे पर लागू कर दिया। लगभग 800 दिन गुजर जाने के बाद में भी केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों से लेकर प्रदेश के 27 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में वहां के अधिकारी कर्मचारियों को तक आज तक जीएसटी उसके प्रावधान आदि के संबंध में कुछ भी ढंग से समझ में नहीं आया इसके विपरीत व्यापारियों को, उत्पादको, ट्रांसपोर्टरों को अपने तरीके से सारा केंद्रीय कस्टम जो अब सीजीएसटी हो गया है और राज्यों के विक्रय कर विभाग के अधिकारी अपने तरीके से मनमानी व्याख्या कर व्यापारियों को मनचाहे तरीके से दंड अधिरोपित कर लूटने के साथ परेशान करने में लगे हुए हैं। जबकि केंद्रीय जीएसटी परिषद भी आज तक ढंग से किसी भी कानून की पूरी और स्पष्ट व्याख्या नहीं कर सकी है। ने चारों तरफ तबाही मचा दी।
8नव. नोटबंदी की कि 3री वर्षी थी, आज धूप पाखंडी मोदी ने अपनी असफलताओं को स्वीकार करने की अपेक्षा एक कार्यक्रम में मोदी ने नोटबंदी की जारी थी कि जबकि 3 वर्ष बाद में भी नोटबंदी के दुष्प्रभावों का असर खत्म नहीं हुआ। नगदी की कमी नेे हीं, देश केे 10 करोड लोगोंं को रूप से बेरोजगार कर दिया।
देश के 90% मध्यम, वृहत और लघु उद्योगों को तबाह कर दिया। देश केे 50लाख से ज्यादा लघु उद्योग नकदी की कमी के कारण तालाबंदी के शिकार हुए़। बची खुची कसर जीएसटी ने पूरी कर दी।
आटो मोबाइल इंडस्ट्रीज से लगभग से जुड़े हुए 20 लाख लोग सीधे-सीधे बेरोजगारी से बर्बादी के मुहाने पर आकर खड़े हुए हैं। वही हाल कपड़ा और तैयार वस्त्रों इलेक्ट्रॉनिक इलेक्ट्रिकल खाद्य वस्तुओं औषधियों रसायनों लोहा, धातुओं, निर्माण, औषधियों व अन्य उद्योगों और व्यापार का भी हुआ।
बड़े ट्रक बनाने वाले अशोक लीलैंड बंद हो गई। टेल्को तालाबंदी की कगार पर है। जिसकी खबरें छोटे अखबारों में आई। बड़ों में नहीं छपी। से लेकर होंडा, सुजुकी, महिंद्रा, मारुति, टाटा, वाल्कस वेगन जैसे कारों के निर्माताओ ने कारों के उत्पादन सभी ने घटा दिए। कुछ ने तो उत्पादन बंद कर दिया।
चलते हैं। मूल कहानी की तरफ सीजीएसटी की।
व्यापारी, उत्पादक जो देश की अर्थव्यवस्था चलाता है।
उसको सेंट्रल जीएसटी जो पूर्व में कस्टम था और वहां का स्टाफ खाकी वर्दी पहनता है।
सूत्रों के अनुसार पूरे देश में सामान ढोने वाले ट्रक ड्राइवरों, व्यापारियों, उत्पादकों के साथ सरकारी डकैतों की तरह पेश आ रहा है। डकैती तो कस्टम वाले पहले भी डालते थे पर अब व्यापारी को या माल के मालिकों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार करते हैं। उनके मुखबिर ट्रकों के संबंध में जानकारी देते हैं फिर यह चोरों उठाईगीरों की तरह उन ट्रकों का पीछा कर पकड़ लेते हैं। पहले ड्राइवरों की पिटाई करते हैं। उसके बाद माल के ट्रकों के मालिक को ट्रांसपोर्टरों को बुलाते हैं।
यह हरामखोर जालसाजों की फौज डराने धमकाने के बाद में फिर पेनल्टी लगाते हैं और पेनल्टी के बराबर अपनी रिश्वत की वसूली भी करते हैं।
जीएसटी की कौन सी धारा में व्यापारियों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार कर ड्राइवरों की पिटाई करना व्यापारियों को डराना धमकाना बदतमीजी दिखाना और फिर पैनल्टी वसूल करने के साथ उसके बराबर ही रिश्वत वसूल करना आदि की कौन सी धाराएं बनाई गई है। व्यापारियों से निवेदन है कि इस संबंध में सीधे सीबीआई के साथ प्रदेश के लोकायुक्त और पुलिस को साथ में लेकर जाएं क्योंकि केंद्रीय सरकार की इस कस्टम के अधिकारी और कर्मचारी जिला न्यायालय और क्षेत्रीय पुलिस से बहुत डरते हैं। बेशक क्षेत्रीय पुलिस को अपनी वर्दी का रोब ऐंठेगे। परन्तु क्षेत्रीय पुलिस को बिना डरे चमके उनके विरुद्ध f.i.r. फाइल करके क्योंकि भारतीय दंड संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता दोनों पूरे एक देश में एक कानून की तरह लगाई जाती हैं और व्यापारियों के साथ जानवरों की तरह पैसा कर उनकी पिटाई करना और दुगनी वसूली करना जिसमें आधी पेनाल्टी और आधी रिश्वत होती है। जो पूर्णतः गैरकानूनी और आपराधिकता है।
इसलिए ऐसी मारा पीटी डराने धमकाने और वसूली करने की सीधे f.i.r. क्षेत्रीय थाने में जरूर करवाएं।
पूरे देश में हर प्रदेश में अगर क्षेत्रीय स्तर पर हर प्रदेश में हर महीने 25-50 केस अगर इन केंद्रीय जीएसटी वालों पर लगा दिए जाएंगे।तो इनको इनकी औकात समझ में आ जाएगी। दूसरी तरफ व्यापारियों का मान सम्मान करने के साथ पेनल्टी जो कानून के अनुसार है। वसूली जाए।
परंतु दुगनी रिश्वत की वसूली न की जाए।
ना मानने पर व्यापारियों वकीलों और उत्पादकों, ट्रक मालिकों, ट्रांसपोर्टरों को बेखोफ इनके विरुद्ध हर प्रदेश में पूरे देश में 25-50 केस न्यायालय में लगा दिए जाएं।
व्यापारी उत्पादक ट्रांसपोर्ट अपनी मेहनत के दम पर सरकार चला रहे हैं। वो सरकारों को टेक्स चुका कर सरकारों को चला रहे हैं।
सरकार के दम पर व्यापारी उत्पादक ट्रांसपोर्ट ट्रक मालिक नहीं चल रहे उन्होंने अपने दम पर अपनी सल्तनत खड़ी की है। उनका भी वहाँ मान सम्मान है। केंद्रीय कस्टम जीएसटी अधिकारियों कर्मचारियों का मतलब यह नहीं कि वह जनता का उत्पादको, व्यापारियों, ट्रांसपोर्टरों का अपमान करें।
ये अधिकारी कर्मचारी की व्यापारिक संस्थाओं को बेईमान बनाते हैं। और फिर लूटते हैं।
|