मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के घोर भ्रष्ट मंत्री सज्जन वर्मा की कहानियां तो पिछले जब कांग्रेस का शासन था तब से 15 साल के अंतराल के बाद जब से कांग्रेस सरकार आई है। जिस प्रकार से कांग्रेसी नेताओं को मंत्री पद क्या मिला। अहंकार में और संदेह का भय कि ना जाने कब सरकार गिर जाए के चक्कर में दोनों हाथ से लूटने बटोरने और घोर निकम्मेेेे, जाल साज, भ्रष्ट अधिकारियों, इंजीनियरो को पाल पोष्र और संरक्षण देकर, मोटी वसूली कर भ्रष्टाचार को संरक्षित कर अपनी 15 साल की धन की भूख मिटाने में जुटे हुए हैं।
अब सत्ता में आए ना आए। कोई भरोसा नहीं और कब सरकार गिर जाए्? इसका भी कोई भरोसा नहीं।
इसलिए पूर्व से बदनाम लोक निर्माण विभाग जिसमें इंदौर में पिछले दो-तीन सालों में केसरी, माथुर, जायसवाल के लोकायुक्त के चंगुल में फंसने के बाद यह तो स्पष्ट हो ही गया की। इंदौरी लोक निर्माण मंत्री सज्जन वर्मा ने चुन चुन के अपनी मोटी कमाई के लिए ऐसे भ्रष्टों को बैैैैठाया है। जो काम के नाम पर काम कम और दाम ज्यादा वसूल कर उनके चरणों में डालते रहें।
इइ जयसवाल सं. 1 जो 30 लाख देकर इंदौर में बैठाया था। तीन चार महीने के ही कांडों में उसने भ्रष्टाचार से लगभग डेढ़ से दो करोड़ रुपए कमा लिया था। पकड़े जाने के बाद विश्वस्त सूत्रों के अनुसार मंत्री को उसने 3 करोड रुपए पुन: ऑफर किया था। पर वह इतना बदनाम हो चुका था। लगातार इंदौर केे दैनिक समाचार पत्रों में 15 दिन तक प्रकाशित होता रहा। जिससे पूरेे विभाग से लेकर पूरा कांग्रेस मंत्रिमंडल भी भारी बदनाम हुआ। इसलिए मजबूरन मंत्री को वह प्रस्ताव ठुकरा कर उसे सागर में मुख्य अभियंता कार्यालय में संलग्न करना पड़ा। यह कहानी का एक छोटा हिस्सा है।
लोक निर्माण विभाग के इसी प्रकार पीआईयू में चुन-चुन कर घोर भ्रष्ट और मक्कारों की पोस्टिंग कर दी गई है। चाहे वह जालसाज भोपाल का परियोजना संचालक विजय सिंह हो, इंदौर का अतिरिक्त परियोजना संचालक नायक हो, सभी संभागीय परियोजना यंत्री हो पूरे मध्यप्रदेश में क्या तांडव चल रहा है इसकी अगर बारीकी से सभी विभागों केे बनाए जाने वाले भवनों की बारीकी से जांच की जाए तो मालूम पड़ेगा कि ठेके पर बनाई गई डिजाइन में डेढ़ से दोगुना कीमत पर डीपीआर बनाई गई है क्योंकि डीपीआर जितनी ज्यादा की होगी आर्किटेक्चर और भवन की डिजाइन करने वाले को इतना ज्यादा कमीशन मिलेगा कहानियां डिजाइन, लोड फैक्टर, देखरेख से 60से 90% तक का निर्माण करना इस तरह कम निर्माण करना आदि कार्यों में मोटी कमाई की जा रही है। स्वभाविक सी बातें हैं, की हरामखोर पीआईयू के डीपी से लेकर अतिरिक्त परियोजना संचालक या बैठा नायक जो कि टेलीफोन लगाने पर जवाब नहीं देता सूचना के अधिकार में अपीलोंं को लगाने के बाद पहले मई-जून की सारी अपीलोंं को इस हरामखोर ने दबाकर हजम कर लिया और सबसे पैसे की वसूली कर ली। अभी भी जानकारी प्राप्त करने के लिए दिए गए पत्रों में जो जवाब नहीं मिले तो उनकी अपील फाइल की। यहां बैठाा और मक्कार कामचोर स्टेनो जैन सब की फाइलें दबा कर बैठ जाता है। और आखरी दिन जानबूझ के उन पत्रों को डाक में पहुंचाता है। ताकि कभी भी समय पर वह डाक संबंधित को ना मिल सके।
सारे दिन तो वैसे यहां वहाँ गायब रहता है और सारे अधिकारियों को अपने संबंध नेताओं व मंत्री से होने के कारण चमकाता धमकाता भी रहता है।
यह उसका पूरा विभाग कुछ लोग जो नये पहुंचे हैं। वह तो उसकी कार्यशैली से इतने रूष्ट हैं। चुपचाप बैठे रहते हैं सारे दिन।
अपील की तारीख लगाई गई एक और एक ही तारीख को 22 तारीख का हस्ताक्षरित किया हुआ पत्र रजिस्टर्ड पोस्ट 1अक्टूू़ू़ 19 को भेजा गया जो 3 अक्टूबर को मिला स्वाभाविक था 1 अक्टूबर की अपील की सुनवाई निकल चुकी थी।
फिर 16 अक्टूबर को अपील की तारीख निश्चित की गई। पत्र आज तक नहीं मिला इस प्रकार यह हरामखोर नायक जो अपनी बदतमीजी के कारण पूरे विभाग में कुख्यात है।
अपनी कार्यशैली से बाज आने को तैयार नहीं और सब को बचाने और सब के भ्रष्टाचार को सिंंचित कर मोटी वसूली करने का कार्य धड़ल्ले से चल रहा है। इसके कार्यकाल के जितने भी भवनों का निर्माण इसके डीपीइ कर रहे हैं यदि जांच की जाए तो सभी भवनों के निर्माण में घोर अनियमितता स्तर हीनता के साथ 10- 20% तक भवन केे सारेे निर्माण छोटेे व कम कर दिये गये।
उनकी फाउंडेशन जितनी डिजाइन में थी उतनी डाली नहीं गई। 20% से लेकर 70% तक कम, लोड फैक्टर के नाम पर भी ठेकेदार और डीपीई मिलकर जमकर बंदरबांट कर रहे हैं।
दरवाजे खिड़कियों से लेकर बिजली फिटिंग में भी 25 से 40% मार्जिन रखकर स्तर हीन काम व सामान का प्रयोग किया जा रहा है।
अधिकांश भवनों में एक्स्ट्रा कास्ट स्वीकृत की जा रही है। और मोटी कमाई में बंदरबांट मंत्री पीएस सचिव परियोजना संचालक द्वारा डी पी ई और ठेकेदारों के भ्रष्ट गठजोड़ से सब को बंट रही है।
यहां नायक के संबंध में भोपाल से लेकर इंदौर तक उसके वरिष्ठ और कनिष्ठ सभी अधिकारी उसकी बदतमीजीयों से परेशान रहते हैं पर मंत्री को क्या उसको तो जितना मिल जाए, उतना थोड़ा, विभाग बदनाम हो, बर्बाद हो, उनकी बला से।
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