सारी मिठाईयां रासायनिक दूध से बनी संभल कर खाइए व खिलाइए। जब दुधारू पशु ही नहीं, तो दूध कहां से आ रहा
सारी मिठाईयां रासायनिक दूध से बनी संभल कर खाइए व खिलाइए। जब दुधारू पशु ही नहीं, तो दूध कहां से आ रहा? इस दीपावली पर सभी पाठकों और साथियों से निवेदन है कि दूध और दूध से बनी हुई किसी भी मिठाई का उपयोग बिल्कुल ना करें क्योंकि दूध के नाम पर विशुद्ध मिलावटी सिंथेटिक दूध मावा मिठाइयां बिक रही हैं। जो ना केवल स्वयं को परिवार को स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक घातक होंगी क्योंकि जब स्वयं सरकार कह रही है। पूरे देश में मात्र 15 करोड़ दुधारू पशु है तो सरकारी सूत्रों के अनुसार केवल 40% गाय और भैंस ही दूध देती है। उनके बच्चे के जन्म के बाद अर्थात 6 करोड गाय भैंस 132 करोड़ की आबादी को 70 करोड़ लीटर दूध प्रतिदिन नहीं दे सकती 6 करोड़ जानवरों की आबादी केवल औसतन 12 करोड़ लीटर दूध देते हैं। जोकि 70करोड़ लीटर दूध की खपत को कहीं से भी पूरा नहीं कर सकते। इस बात को सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार कर लिया। जिसे लगातार में पिछले 15 सालों से लिख रहा था। स्वभाविक है। 90% दूध जो बाजार में उपलब्ध है सिंथेटिक रसायनों से बना हुआ होने के कारण दूध, दही, मावा, मिठाइयां, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आइसक्रीम, चॉकलेट, क्रीम बिस्कुट आदि सब नकली दूध के बने हुए हैं। सांची और अमूल जैसे भी सरकारी सहकारी होने का फायदा उठाकर वहां बैठे क्रय, उत्पादन, प्रबंधक से लेकर विक्रय प्रबंधक तक सब भारी भ्रष्ट जालसाज होकर मोटी कमाई करते हैं क्योंकि सहकारिता अधिनियम के अनुसार सभी सहकारी संस्थाओं का अध्यक्ष जिले का जिलाधीश होता है। उसकी आड़ में भी सारा काला पीला करते रहते हैं। यही कारण है कि दोनों सूकरों की फौज सरकारी सहकारी संस्थाओं में भी बैठे सभी जाल साज क्योंकि कलेक्टर को मोटा महीना पहुंचाते हैं और उसकी आड़ में सारा मिलावटी गोरख धंधा करते हैं। जिसके दो टैंकर नकली दूध पकड़े गए थे। इंदौर में। उस मामले को पूरी तरीके से दबा दिया गया। बेशक यह दूध का पाउडर विदेशों से खरीदी करते हैं। और उसी में पानी मिलाकर दूध बनाकर बाजार में पिछले 50-60 वर्षों से बेच रहे हैं। वैसे इन दोनों के ऊपर निजी तौर पर जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय के साथ उपभोक्ता न्यायालयों में भी प्रकरण दर्ज कराना चाहिए। क्योंकि यह झूठ बोलते हैं कि ये गायों का ताजा दूध पैक करके बेचते हैं इनका दूध दही मक्खन घी पेड़े आइसक्रीम सब स्तर हीन और मिलावटी होते हैं। सांची गोल्ड में जो 6 से 8% फेट ल‍िखा जाता है वह 2% भी नहीं होताऔर अमूल गोल्ड में तो मध्यप्रदेश में गुजरात से लाकर जो क्षेत्रीय स्तर की पैकिंग और बिक्री एजेंसी होती है। वह असली माल गुजरात से आता है उसे अच्छी कीमत पर बेचकर खा जाती है। और एजेंसी वही नकली रसायनों से बना दूध, दही, घी, मक्खन, छांंछ, स्तर हीन, पुराना खाद्य सामग्री जनता को बेची जाती है। अमूल दूध के नमूने लेने पर गुजरात से कलेक्टर को फोन आता है। और फिर क्षेत्रीय जिले का जिलाधीश खाद्य निरीक्षक को चमका देता है। इस प्रकार दोनों केे ही बरसों से नमूने नहीं लिए गए। परिणाम स्वरूप जनता को उसी धीमी जहर की मात्रा दूध के नाम पर दूध मुुुंहें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबको खाना पड़ रही है। इसी कारण इन हरामखोर जालसाजों पिछले 34 वर्षों से अपने दूध के नमूने नहीं लेने दिए खाद्य निरीक्षकों को खाद्य एवं औषधि विभाग के निरीक्षकों को। अगर वह नमूने लेने चले जाएं तो जिले का कलेक्टर ने धमकाता है। यह बात सन 2008 और 14 में विधानसभा में प्रश्न उठाए जाने पर सरकार ने स्वीकार की थी। वहां पर बैठे हरामखोर जाल साज भ्रष्टों की फौज प्रबंधक से लेकर नीचे प्लांट में काम करने वाले खरीदी करने वाले आने वाले माल की जांच करने वाले सभी मोटी रकम वसूल कर सब कुछ आंकड़े कागजों में फर्जी भरते हैं। हर कलेक्टर कमिश्नर से लेकर दुग्ध संघ के अध्यक्ष मंत्री क्योंकि सबको महीना पहुंचता है। इसलिए सारे चुप रहते हैं और जनता से भरपूर ₹54 लीटर ₹52 लीटर की वसूली करते हैं। दूध की आवक 1-1.5 लीटर भी नहीं होती और इंदौर में ही 4 से 7-8लाख लीटर दूध बेचा करते हैं। फिर गांव से आने वाला दूध बंदी का और फेरी का 90% नकली है। क्योंकि गांव में दुधारू गाय भैंस जानवर ही पर्याप्त नहीं। चरनोई की जमीने नहीं। घास के मैदान नहीं। अधिकांश खेती अब ट्रैक्टर और यंत्रों से होने लगी है। बेेलों की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए जानवरों की जरूरत भी नहीं फिर गाय को रखने का खर्च प्रतिदिन 300 से ₹500 और भैंस का 500 से ₹ 1000/- औस्तन होता है। 90% किसान कर्ज में लदा होता है। तो दुधारू पशुओं को रखने का खर्च कौन उठाएगा। इसलिए जानवर भी नहीं पाले जाते गाय सड़कों पर घूमती रहती हैं और जो रखते भी हैं उनके घर के लिए भी पूरा नहीं पड़ता तो बाजार में बेचेंगे कहां से? जो सचमुच गाय भैंस रखकर दूध निकाल रहे हैं। कोई भी ₹ 70- 80 लीटर से दूध कम नहीं बेच रहा। अब आप ही निर्णय करें की कितने महंगे भाव में कितना अच्छा जहर खरीदना है। मिठाई के नाम पर रोज छापेमारी कार्रवाई चल रही है, उन्हीं के ऊपर, जिनसे खाद्य निरीक्षकों, नगर निगम के और विभाग के स्वामी से लेकर सभी अंतर्यामीयों तक 10 साल से एक ही स्थान पर बैठे करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। दुधारू गाय का हर कोई दूध पीना चाहता है इसलिए 154 से ज्यादा खाद्य निरीक्षक पूरे प्रदेश में 10-10 साल से ज्यादा समय से एक ही स्थान पर बैठे हुए हैं। सब को पैसा चाहिए। भाड़ में गई जनता। और यदि आज घर पर छापा मार दिया जाए इनके ऊपर 10-20 करोड़ नगद रोकड़ा मिल जाएगा स्वामी खेड़कर बीबीएस तोमर व अन्य सभी के पास जो इस कार्रवाई में सीधे सलंग्न हो कर वसूली कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट की तो चांदी चारों तरफ कट रही है। स्वास्थ्य विभाग से भी खरीदी के नाम पर करोड़ों रुपए का महीना आ रहा है। और खाद्य एवं औषधि विभाग से भी करोड़ों की सेटिंग पूरे प्रदेश के उत्पादकों से मनीष स्वामी के माध्यम से चलती रहती है। सैंपल भरे जाते हैं। मोटी वसूली की जाती है और सेटिंग से सब पास हो जाते हैं। बाकी मेरे बुद्धिजीवी पाठक सब समझदार हैं। नमूने भरने की नौटंकी और फोटो अखबारों में छपवाने और हड़कंप मचाने से मोटी वसूली के रास्ते साफ हो जाते हैं। शुद्ध के नाम पर पूरी कांग्रेस सरकार वसूली का युद्ध चला रही है। इसीलिए स्वामी 2लाख रू हर महीने से ज्यादा दैनिक समाचार पत्रों के संबंधित पत्रकारों को बांटता है।
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