|
श्योपुर से 24 किमी दूर मध्य प्रदेश सड़क डकैती विकास निगम की यह सड़क जो श्योपुर शिवपुरी मुरैना गुना ग्वालियर जाती है इसका डिजाइन ड्राइंग और निर्माण जहां पर वर्तमान में 20 फुट पानी भरा हुआ है कैसी होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है जब सड़कों पर दोनों तरफ 30'- 30' चौड़ाई की खाली भूमि वृक्षारोपण और नालियों के लिए ही खरीदी व व्यवस्था की जाती है। ताकि पर्याप्त नालियां बना नालों और नदियों से जोड़ी जाकर 12 महीने वाहन चालक सुरक्षित व सुविधा से गुजर सकें।
वैसे तो स्थान डकैती विकास निगम में सन 2003 से ही जहां हर स्तर पर तकनीकी सिविल इंजीनियर होने चाहिए थे वहां पर भी दिग्गी दानव ने अपने घोर भ्रष्ट मक्कार राजस्व के अधिकारी बैठा दिए थे जो आज भी काम धाम करें ना करें पर प्रतिनियुक्ति भत्ता लेते हुए मोटे वेतन पर कुंडली मारे अजगर की तरह लूट में लगे हुए हैं। दूसरी तरफ यहां जो जो नकारा निकम्मे घोर भ्रष्ट इंजीनियर जिनके खिलाफ कोई जांचे चल रही थी।
या भारी बदनाम हो चुके थे। शिकायतें लंबित थी जो उसके मूल विभाग लोक निर्माण विभाग या अन्य विभागों से जिसमें लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी जल संसाधन से आए हुए हैं। को यहां कोई प्रतिनियुक्ति भत्ता नहीं मिलता है। और जो राजस्व के अधिकारी बैठे हैं।
उन्हें नियम कानून से नहीं मोटी कमाई से मतलब होता है। अपने भ्रष्टाचार के लिए इन तकनीकी सिविल इंजीनियरों को प्रताड़ित करना अपने हिसाब से नचाना और मोटी वसूली के लिए परेशान करने का कार्य करते हैं।
हर सड़क परियोजना का डिजाइन ड्राइंग डीपीआर आदि कुल प्रोजेक्ट की कीमत का 1-2% पर कंसल्टेंट्स एजेंसियां बनाती हैं। जो किसी नेता या भारतीय प्रताड़ना सेवा के अधिकारियों के सरंक्षण में पल रही या निवेश की हुई एजेंसी ही होती है।
जो जानबूझकर 4 से 10 गुना ज्यादा कीमत पर डीपीआर तैयार करती है। ताकि 100 करोड़ के काम के 500 करोड़ की डीपीआर बनाने पर 10 करोड़ रुपए मिलते हैं।
फिर दूसरी तरफ उसकी निगरानी के लिए भी इसी प्रकार 2से5% कमीशन पर एक कार्य मॉनिटरिंग एजेंसी अलग काम करती है। जिसका काम होता है कार्य को करने वाले ठेकेदार के कार्य की निगरानी और गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए देखरेख करना।
परंतु वह उस ठेकेदार से दोस्ती कर खुद ही दोनों तरफ से मोटा कमीशन हजम करती रहती है। इसलिए यहां बैठे डकैत इंजीनियर केवल ऊपरी तौर पर सभी ऐसे प्रोजेक्ट की देखरेख करते रहते हैं। खुद मोटी वसूली करते हैं अपने आकाओं को पहुंचाते हैं। निष्कर्ष में दोनों ही एजेंसियां जो डिजाइन और ड्राइंग तैयार करती है। दूसरी जो मॉनिटरिंग करती है।
यथार्थ में दोनों के ही इंजिनियर्स क्षेत्र का और निर्माण का अनुभवहीन, स्टाफ डिग्री बांटने वाली फर्जी संस्थाओं के नव नवाड़े इंजीनियर होते हैं।
जो दैनिक वेतन भोगियों से भी कम वेतन पर 8 से ₹12000 प्रतिमाह पर रख लिए जाते हैं। उम्मीद की जा सकती है कि जो सड़क पर 20 फुट से ज्यादा बाढ़ का बरसाती पानी भरा हुआ है। जो उस सड़क निर्माण के लिए नहीं वरन् नहर निर्माण के लिए किया गया था।
अब पाठकों को विश्वास हो जाएगा कि मैं इस निगम को सड़क विकास की अपेक्षा सड़क डकैती निगम क्यों लिखता हूं। यह सड़क निर्माण की गाथा को इस सड़क डकैती विकास निगम की उपलब्धि पर पूरी दुनिया में सिविल इंजीनियरिंग का तोहफा और भ्रष्टाचार का श्रेष्ठ नमूना सिद्ध करेगा।
सड़क का जो हाल नहर की तरह हुआ वह इस फोटो से लगाया जा सकता है।
दूसरी तरफ सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि इन हरामखोर भारतीय प्रताड़ना सेवा के अधिकारियों को जो मात्र एक भारतीय संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करके इस देश के खुदा बन जाते हैं। जिन्हें खुद का होश नहीं रहता वह इन लोक निर्माण विभाग, विद्युत मंडल जैसी उच्च तकनीकी संस्थाओं के प्रबंध संचालक बनकर क्या गुल खिला रहे हैं। यह उसका भी एक उत्कृष्ट नमूना है। पर हमारे अनपढ़ सड़कों के गुंडे, मवाली, अवैध, वसूलीबाज, आपराधिक, भ्रष्ट मक्कार नेताओं, मंत्रियों को इस से कोई मतलब नहीं वह तो इन चाटुकार आईएएस अधिकारियों के इशारे पर नाच कर इन तकनीकी संस्थाओं को पूर्णता बर्बाद कर रहे हैं।
|