लोक निर्माण विभाग के
पूरे मध्यप्रदेश के सभी भवन व पथ के संभागों में ए आर और एस आर के जो काम हो रहे हैं। 90% फर्जी हैं। कुछ ठेकेदारों का कुछ संभागों में तो30- 40% तक नीचे टेंडर लेकर केवल भुगतान लिए जाते हैं। क्योंकि जिस कीमत में टेंडर लिया जाता है।उस कीमत में उतनी सामग्री खरीदी नहीं जा सकती बाजार से, तो काम कैसे होंगे? स्वाभाविक सी बात है कि काम कुछ नहीं होता और केवल फर्जी भुगतान होते हैं इसमें कार्यपालन यंत्री संबंधित सहायक यंत्री और उपयंत्री ठेकेदार के साथ मिलकर पूरा फर्जीवाड़ा करते हैं। और एआर, एसआर का 100% पैसा हजम कर लिया जाता है। फिर यही पैसा ट्रांसफर करवाने, सेटिंग करवाने, अपने भ्रष्टाचार की फाइलों की जांच करवाने से रोकने आदि में यह इंजीनियर खर्च करते हैं।
लोक निर्माण विभाग के संभाग क्रमांक एक में 8 मार्च 19 को रु 35 लाख देकर पदस्थ हुए धर्मेंद्र जायसवाल जो कि मोटा पैसा देकर एसडीओ से इइ के चार्ज में बैठे हुआ था। आज ८:00 बजे के आसपास लोकायुक्त द्वारा ट्रैप कर लिया गया भारी मोटी बसूली की बस 30-40% तक कमीशन वसूल रहा था कई काम तो केवल कागजों पर ही संपन्न हो रहे थे। तक की नई खोली गई नेताओं में जो 30% से ज्यादा नीचे थे। यदि उससे ज्यादा कम के टेंडर 35-40% तक जाते थे। तो बीच के अंतर की राशि का भी भुगतान कार्य देश जारी करने से पहले जयसवाल ठेकेदारों से मांगता था हाल ही में ए आर और एसआर में 70% तक काम केवल कागजों पर ही किए जा कर हजम कर लिए जाते थे यदि यदि उप संभाग क्रमांक 1 व 2 इंदौर नगर के सहायक यंत्री द्वारा बनाने में यदि पूछताछ की जाती थी तो वह सारे भुगतान महू उप संभाग के माध्यम से पास करवाकर जयसवाल अपने हाथ से पास करके मोटा कमीशन खाकर धन वितरित कर दिया करता था।
शासकीय भवनों की बरसात में पानी चूने की समस्या को दूर करने भवनों के कोई भी काम जो रु4 से 5लाख का होता था़। 40-50 लाख से कम में नहीं होता था। इसके सारे ठेके 40 प्रतिशत तक नीचे मात्र इरफान को पिछले 10-12 साल से मिलते रहे हैं। जो घटिया स्तर की 5-6 एमएम की मोटाई की तारपोलीन की अपेक्षा 2-3mm की डालकर कर कार्य किया जाता था। ऐसी हर साल करीबन 500 से ज्यादा भवनों पर जो स्वास्थ्य विभाग, राजस्व शिक्षा, न्यायालय, वािणज्य कर, श्रम, कृिष, पुलिस वह अन्य सभी सरकारी विभागों के बंगलों और कर्मचारियों के रहवासी स्थलों के होते थे। करता आ रहा है सीधा सीधा 30% का काम और 30% सीधे बंदरबांट में बांटे जाते थे। कई भवनों की तो बस सारी खानापूर्ति कागजों पर ही संपन्न करके बिल भुगतान ले लिए जाते थे। यही हाल रोहित गुप्ता का है। जो सुदर्शन गुप्ता का पुत्र है जिसे कोई काम नहीं आता बस सारे काम करने के लिए वही के उपयंत्री जो बरसों से बैठे हुए हैं। अपने तरीके से व स्तर पर करवा कर बिल भुगतान के 20 से 25% स्वंय हजम कर 25% भुगतान उसको दे दिया जाता था। जो जायसवाल के आने के बाद भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा पर पहुंचने लगा था इसके आने के बाद से 4 माह में किसको कितने भुगतान किस कार्य के लिए किए गए हैं और लोकायुक्त को उसकी भी बारीकी से जांच करनी चाहिए।
जुलाई 19 में रुपए 62 लाख का भुगतान जयसवाल ने मोटा कमीशन देने वाले 2--3 ठेकेदारों को ही किया बाकी सबको बोला भुगतान नहीं आया।
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