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मोदी और अमित शाह संसद में देश वर्तमान आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों को बिना कुछ खास सोचे समझे अपने पूंजीपतियों के इशारे पर क़ानून पर कानून बनाने में लगे हुए हैं। उन्हें जनता के 132 करोड़ लोगों और देश के वर्तमान भौगोलिक और शासन द्वारा निर्मित संरचनाओं महानगरो, नगरों से लेकर ग्रामीण व्यवस्था को सोचे-समझे बिना सड़कों यातायात आदि पर जो हाल ही में कानूनों में संशोधन कर नियम थोपे गए हैं। दंड की राशि बढ़ाकर 5 से 10 गुना तक कर दी गई है। सरकार की, िनगमों पािलकाओं की सड़कें, जो नेता और पार्षद जिनके जेहन में गुंडागर्दी, बदमाशी और लूट भरी होती है। अपनी मर्जी से सड़कों को बनवाते हैं। अपने मोटे कमीशन पर अपना ठेकेदारों से उन्हें मतलब नहीं है कि इस पर चलने वाले लोगों का क्या हाल होगा कितनों के एक्स दुर्घटनाएं होंगी और कितनों के हाथ पैर टूट कर कौन सीधा ही हम लोग सुधर जाएगा इन सड़कों से उन्हें मतलब है बस हरामखोर को केवल अपने कमीशन और दलाली से अपने बनाए हुए सड़कों की रचनाओं पर बेचारी जनता कैसे चले उसके ऊपर 3 सरकारी अधिकारी पार्षद महापौर नेता मंत्री अपनी सुविधाओं अपने मोटे कमीशन के लिए इंदौर की एमजी रोड की सड़कों पर 40 फुट चौड़ी नहीं है मैं 12 फुट बाई 30 फुट लंबी सूत्र सेवा की बस चला देते हैं आजू बाजू से निकलने वाले हर व्यक्ति की जान दहशत में रहती है पर इन सूकरों को उससे कोई मतलब नहीं। मोदी को तो केवल कानून को अपने जनता का खून पीने और वसूली करने से मतलब है पंच सरपंच सरकार के नियम सरकार की पुलिस व्यवस्था चाहे कैसी भी हो इन दहशतगर्दो को केवल जनता का खून पीने से मतलब है। संसद में बैठकर जन्मजात नये कानूनों से डकैत इतिहास िलखना चाहते हैं।
देश के आर्थिक समृद्धि मंदी को दूर करने के प्रयास रोजगार देने के प्रयासों में नाकाम रहने के बाद
अनपढ़ राक्षस कानून बनाने में अपनी मास्टरी दिखाना चाहता है।
गुजराती गिद्ध भेड़िया मोदी इतिहास रचने और कानून थोपने के चक्कर में धड़ाधड़ बिना सोचे समझे पूंजी पतियों के लाभ के लिए कानून ठोके जा रहा है।
पहले ही नोटबंदी, जीएसटी से, पेट्रोल, डीजल गैस की बढ़ती कीमतों और उस पर चौगुनी बसूली से देश की अर्थव्यवस्था व व्यवसाय उद्योग धंधे चौपट पड़ा हुआ है। देश की आबादी के एक चौथाई युवा बेरोजगार बैठे हैं तबाही चारों तरफ मचा रखी है।
देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद होकर मंदी की तरफ बढ़ रही है।
पर इस घोर मक्कार अनपढ़ बदतमीज को इससे कोई मतलब नहीं। अपने कुकर्मों, भ्रष्टाचार और नाकामियों से जनता की नजर हटाने उसको दहशत फैलाने, परेशान करने के नाम बस कानून थोपे जा रहे हैं।
यातायात सुधारने सड़कों की दशा सुधारने सड़कों के गड्ढे भरने चौराहों को तकनीकी व इंजीनियरिंग तरीके से सुधारने, नियंत्रण करने के लिए पर्याप्त पुलिस बल भर्ती कर भरने और चौराहों पर चालान काटने की अपेक्षा यातायात सुधारने, सड़कों पर होने वाले गड्ढों के कारण होने वाली दुर्घटनाएं और उसको बचाने और स्वयं को व वाहन को बचाने के लिए भिड़ते लोगों की समस्याओं को, खेल मैदानों के अभाव में सड़कों पर क्रिकेट, बैडमिंटन खेलते बच्चों और बड़े, गली मोहल्ले से लेकर बड़ी सड़कों पर लपकते आवारा कुत्तों से, आवारा जानवरों से जानबचाकर भागते वाहन चालकों की पहले इन सब से मुक्त करते और यदि इसके विपरीत सब कुछ अच्छा होने के बाद में भी लोग जानबूझकर यातायात के नियम तोड़कर दूसरों को परेशान करते हैं। तो नियम कानून बनाना ठीक होता। बेशक देश में हर वर्ष 5लाख लोग सड़कों पर मर जाते हैं।
पर कानून बनाने से व्यवस्था सुधरने वाली नहीं। आवश्यकता इस बात की है। कि देश की देश के नगरों से लेकर गांव की सड़कों की पर्याप्त चौड़ाई जो न्यूनतम 27 फुट चौड़ी होने से लेकर शहरों में फोरलेन होना आवश्यक है और महानगरों में सिक्स लाइन होना चाहिए। अगर यह नहीं है।
तो स्पष्ट रूप से यह घोर बदतमीजी और अपनी छिछोरी मानसिकता का परिचायक होगा। मोदी की।
यदि सड़कों पर पर्याप्त चौड़ाई सुरक्षा साधन व अन्य सभी आवश्यक व्यवस्थाएं नहीं है। तो कानून थोपना केवल जनता का खून पीने जैसा है।
शहर के बाहर लगी टोल नाकों की भीड़ में खड़े वाहनों मे देश की पेट्रोल डीजल पर बर्बाद होती विदेशी मुद्रा, फिर समय की बचत करने के चक्कर में वहां से बाहर निकल कर भागते हुए वाहन फिर दुर्घटना के शिकार होते हैं। पैसे देने के बाद में भी, इस लूट को तो नहीं रोका आपने। देश के राज्यों के और राष्ट्रीय राजमार्गों पर होती लगभग प्रतिदिन 500 करोड़ की लूट के बाद में भी उबड़ खाबड़ गड्ढा युक्त सड़कें उल्टी-सीधी बनावट से होती हुई दुर्घटनाओं पर भी कोई कानून बनाते पर वह वह अपने बाप नितिन गडकरी का मामला है और देश के अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्गों पर उसकी साझेदारी और मोटा हिस्सा है।
इसलिए उस पर कोई टिप्पणी नहीं की आपने जबकि सबसे ज्यादा दुर्घटनाओं में लोग राष्ट्रीय राजमार्गों पर मारे जा रहे हैं। वह भी यातायात का हिस्सा है। हर टोल सड़क दुर्घटना में होने वाली क्षतिपूर्ति में उससे भी वसूली की जानी चाहिए यह कानून भी नहीं बनाया आपने।
हेलमेट के नाम पर रू1हजार का दंड, जबकि हेलमेट की बनावट में ही घोर खामियां हैं। हेलमेट लगाने के बाद चालक को आजू बाजू की आवाज तक सुनाई नहीं पड़ती और आजू-बाजू दिखता भी नहीं और पीछे व आजू बाजू से आने वाले वाहन, दो पहिया वाहन को टक्कर मार कर निपटा देते हैं।
यथार्थ में हर नया कानून पुलिस को जनता को लूटने का नया हथियार देता है और इन यातायात के नियमों से और दो से 5 गुना लगाए गए दंडों से भी पुलिस की जेबों को ही भारी करने का मौक़ा दे रही है। फिर गृह मंत्री के रूप में बैठा हुआ अमित शाह इस कानून से संभवतया अपनी कमाई दुगनी कर लेगा जो लाखों करोड़ में होगी प्रति माह।
फिर सरकार वर्तमान की स्थिति की जेलों को 4 गुना क्षमता की जेलों को बनवाईये पहले।
ताकि 2-5 करोड़ लोगों को यातायात के नियमों के आधार पर जेलों में ठूंसकर उनके घर परिवार और बच्चों को बर्बाद किया जा सके। और उनकी बीबी बेटियों का स्वंय भी शोषण करना और पुलिस, प्रशासन, वकीलों, नेताओं और न्यायालयों के सरकारी वकीलों और न्यायाधीशों को भी करवाने का मौका देना।
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