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निसंदेह यह मेरी धरती के इस देवभूमि में अवतरण से लेकर अंत तक मस्तिष्क में यह पीड़ा विद्यमान है और रहेगी। लाखों विद्यालयों में देश के हमारी देव भाषा को मातृ भाषा के रूप में नहीं पढ़ाया जाता। इसलिये यथार्थ में रोजी रोटी लायक ही कामचलाऊ उथला ज्ञान ही अर्जित कर सका।
जिस संस्कृत ने पूरे विश्व को भाषा का ज्ञान देने के साथ धर्म, अध्यात्म, रसायन, भौतिकी, कृषि, गणित, नीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, युद्ध कौशल, योग, स्वास्थ्य, से लेकर ज्योतिष तारामंडल, कालगणना, अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के ज्ञान तक की उत्पत्ति तक संजो रखा है।
पर उसी देश में वहां के बच्चों को संस्कृत नहीं पढ़ाई जाती जबकि विश्व के अनेकों अग्रिम श्रेणी के राष्ट्र कहलाने वाले देशों में वहां के विश्वविद्यालय अपने छात्रों को संस्कृत का अध्ययन व अनुसंधान के लिये छात्रवृत्तियां उपलब्ध करवाते हैं।
पर मेरे भारत का दुर्भाग्य है।
यहां के घोर भ्रष्ट, नकारा, निकम्मे, अय्याश, मक्कार नेताओं, मंत्रीयों, भारतीय प्रताडना सेवा के सत्ताधीशों ने जानबूझकर प्राथमिक शालाओं से विश्वविद्यालय स्त्तर तक अपने ही पूरे देश में संस्कृत के अध्ययन और वेदों पुराणों उपनिषदों संहिताओं में छुपे रहस्यों को जानने के अनुसंधान के लिए छात्रवृत्ति यां तक 70 साल की आजादी के बाद भी व्यवस्था नहीं की गई।
जबकि विश्व के सभी भाषा विज्ञानी यह मानते हैं। की भारत की देव भाषा संस्कृत ही पूरे विश्व की भाषाओं की जननी है।
विश्व की सारी भाषाओं में संस्कृत से उत्पन्न और उसके समानांतर शब्दों की भरमार है।
यह कब विश्व की भाषा बनेगी। कब कंप्यूटर पर छाएगी।
ताकि भारत के प्राचीन वेदों पुराणों उपनिषदों संहिताओं मैं छुपे रहस्यों को हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी गहराई से समझ प्रकृति के समानांतर और प्रकृति के अनुकूल अपना आध्यात्मिक धार्मिक सामाजिक आर्थिक विकास कर सके।
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